गुरुवार, 24 मई 2012

ग़ज़ल ( दिलासा )




ग़ज़ल ( दिलासा )
सजाए  मोत का तोहफा  हमने पा लिया  जिनसे 
ना जाने क्यों बो अब हमसे कफ़न उधर दिलाने  की बात करते हैं 

हुए दुनिया से  बेगाने हम जिनके एक इशारे पर 
ना जाने क्यों बो अब हमसे ज़माने की बात करते हैं 

दर्दे दिल मिला उनसे बो हमको प्यारा ही लगता
जख्मो पर बो हमसे अब मरहम लगाने की बात करते हैं 

हमेशा साथ चलने की दिलासा हमको दी जिसने
बीते कल को हमसे बो अब चुराने की बात करतेहैं 

नजरे जब मिली उनसे तो चर्चा हो गयी अपनी 
ना  जाने क्यों बो अब हमसे प्यार छुपाने की बात करतेहैं 




ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

1 टिप्पणी:

  1. हुए दुनिया से बेगाने हम जिनके एक इशारे पर
    ना जाने क्यों बो अब हमसे ज़माने की बात करते है
    superb.

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