सोमवार, 9 जुलाई 2012

ग़ज़ल (वक्त की रफ़्तार )


ग़ज़ल (वक्त    की रफ़्तार )

वक्त    की रफ़्तार  का कुछ भी भरोसा है नहीं
कल तलक था जो सुहाना कल बही विकराल हो

इस तरह से आज पग में फूल से कांटे चुभे है
चांदनी से खौफ लगता ज्यों  कालिमा का जाल हो

ये किसी की बदनसीबी गर नहीं तो और क्या है
याद आने पर किसी की हाल जब बदहाल हो

पास रहकर दूर हैं   और  दूर रहकर पास हैं 
ये गुजारिश है खुदा से  अब मिलन  तत्काल हो

चंद  लम्हों  की धरोहर आज जिनके  पास है
ब्यर्थ  से लगते मदन अब मास  हो या साल हो

ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना 

6 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन अल्फाज़ से सजे नज़्म

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  2. बेहतरीन अल्फाज़ से सजे नज़्म

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  3. ये किसी की बदनसीबी गर नहीं तो और क्या है
    याद आने पर किसी का हाल जब बदहाल हो
    बहुत खूब .... !

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  4. रचना पसंद करने और बहुमूल्य सन्देश के लिए आप सभी का तहे दिल से हार्दिक आभार .

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  5. sundar abhivyakti lagi ..accha blog hai ...........shukriya mere blog par aane ka swagat hai aapka

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  6. बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
    बहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार !

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