सोमवार, 17 सितंबर 2012

ग़ज़ल(इक जैसी कहानी)




ग़ज़ल(इक जैसी कहानी)

हर  लम्हा तन्हाई का एहसास मुझकों होता है
जबकि दोस्तों के बीच अपनी गुज़री जिंदगानी है

क्यों अपने जिस्म में केवल ,रंगत  खून की दिखती
औरों का लहू बहता ,तो सबके लिए पानी है

खुद को भूल जाने की ग़लती सबने कर दी है
हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है

दौलत के नशे में जो अब दिन को रात कहतें है
हर गल्तीं की  कीमत भी, यहीं उनको चुकानी है

वक़्त की रफ़्तार का कुछ भी भरोसा  है नहीं
किसको जीत मिल जाये, किसको हार  पानी है

सल्तनत ख्बाबो की मिल जाये तो अपने लिए बेहतर है
दौलत आज है  तो क्या ,आखिर कल तो जानी है


ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

11 टिप्‍पणियां:

  1. bahoot achha likha hai ji aapne aur wo bhi hindi mein hi kya baat hai humein bahoot pasand aaya
    bhagwan aapko aur badi soch de

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    1. आपकी सार्थक प्रतिक्रया हेतु शुभकामनाओं सहित हार्दिक साभार धन्यबाद ……

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  3. आपकी गजल बहुत अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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    1. आपकी सार्थक प्रतिक्रया हेतु शुभकामनाओं सहित हार्दिक साभार धन्यबाद ……

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  4. उत्तर
    1. आपकी सार्थक प्रतिक्रया हेतु शुभकामनाओं सहित हार्दिक साभार धन्यबाद ……

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