सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

ग़ज़ल (इशारे जो किये होते )





ग़ज़ल (इशारे जो किये होते )


किसी   के  दिल  में चुपके  से  रह  लेना  तो  जायज  है
मगर  आने  से  पहले  कुछ  इशारे  भी  किये  होते  

नज़रों  से मिली नजरें तो नज़रों में बसी सूरत  
काश हमको उस खुदाई के नज़ारे  भी दिए होते 

अपना हमसफ़र जाना ,इबादत भी करी जिनकी 
चलतें दो कदम संग में ,सहारे भी दिए होते 

जीने का नजरिया फिर अपना कुछ अलग होता  
गर अपनी जिंदगी के गम ,सारे दे दिए होते 

दिल को भी जला लेते और ख्बाबों को जलाते  हम 
गर मुहब्बत में अँधेरे के इशारे जो किये होते 

ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

12 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आपकी सराहना मेरे लिये किसी पुरस्कार से कम नहीं है.....तहे दिल से आपका शुक्रगुजार हूँ

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  2. बहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल ,उम्दा पंक्तियाँ ..

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  3. बहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल ,उम्दा पंक्तियाँ ..

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    1. आपकी सराहना मेरे लिये किसी पुरस्कार से कम नहीं है.....तहे दिल से आपका शुक्रगुजार हूँ

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  4. उत्तर
    1. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .आशा है आगे भी आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा .आभार .

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  5. दिल को भी जला लेते और ख्बाबों को जलाते हम
    गर मुहब्बत में अँधेरे के इशारे जो किये होते

    बहुत सुंदर गज़ल अनूठे भाव लिये.

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  6. अपना हमसफ़र जाना ,इबादत भी करी जिनकी
    चलतें दो कदम संग में ,सहारे भी दिए होते

    जीने का नजरिया फिर अपना कुछ अलग होता
    गर अपनी जिंदगी के गम ,सारे दे दिए होते

    यही बयान करती मेरी पोस्ट
    चार दिन ज़िन्दगी के .......
    बस यूँ ही चलते जाना है !!

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    उत्तर
    1. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .आशा है आगे भी आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा .आभार .

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  7. अच्छी गजल , इसी के ऊपर मेरी गजल की चार पंक्तियाँ -
    नजर खामोश रहती , गर जुबां कुछ बात कर पाती
    कदम मासूम रहते जो , तू हमारे साथ चल पाती
    न जख्म यूँ पकता , न तो नासूर यूँ बनते ,
    गर जख्म होती तू , तू ही मरहम लगा पाती |

    सादर

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