गुरुवार, 28 मई 2015

ग़ज़ल(ये किसकी दुआ है )







ग़ज़ल(ये किसकी दुआ है )



मैं रोता भला था , हँसाया मुझे क्यों
शरारत है किसकी , ये किसकी दुआ है

मुझे यार नफ़रत से डर ना लगा है
प्यार की चोट से घायल दिल ये हुआ है

वक्त की मार सबको सिखाती सबक़ है
ज़िन्दगी चंद सांसों की लगती जुआँ है

भरोसे की बुनियाद कैसी ये जर्जर
जिधर देखिएगा  धुँआ ही धुँआ है

मेहनत से बदली "मदन " देखो किस्मत
बुरे वक्त में ज़माना किसका हुआ है

 




मदन मोहन सक्सेना




8 टिप्‍पणियां:

  1. भरोसे की बुनियाद कैसी ये जर्जर
    जिधर देखिएगा धुँआ ही धुँआ है

    मेहनत से बदली "मदन " देखो किस्मत
    बुरे वक्त में ज़माना किसका हुआ है
    शानदार अल्फ़ाज़

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  2. मैं रोता भला था , हँसाया मुझे क्यों
    शरारत है किसकी , ये किसकी दुआ है ...
    the opening lines say it all even if the latter were not there! (not that they are any less though)
    Absolutely beautiful, Madan!

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  3. मदन मोहन जी एक अच्छी पेशकश...

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  4. क्या बात है। बहुत ही सुन्दर रचना।

    http://chlachitra.blogspot.in
    http://cricketluverr.blogspot.in

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  5. अक्सर प्रेम ही चोट देता है ... बहुत सुन्दर लिखा है ...

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  6. सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
    शुभकामनाएँ।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  7. भरोसे की बुनियाद कैसी ये जर्जर
    जिधर देखिएगा धुँआ ही धुँआ है
    बहुत ख़ूब
    http://savanxxx.blogspot.in

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