सोमवार, 2 नवंबर 2015

दो शेर













दो शेर 



प्रथम :


अब सन्नाटे के घेरे में जरुरत भर ही आबाजें
घर में ,दिल की बात दिल में ही यारों अब दबातें हैं


 दूसरा : 

इन्सानियत दम  तोड़ती है हर गली हर चौराहें पर
ईट गारे के सिबा इस शहर में रक्खा क्या है










मदन मोहन सक्सेना

2 टिप्‍पणियां:

  1. इन्सानियत दम तोड़ती है हर गली हर चौराहें पर
    ईट गारे के सिबा इस शहर में रक्खा क्या है

    सच कहा सक्सेना जी.

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