गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

ग़ज़ल(देकर दुआएँ आज फिर हम पर सितम वो कर गए



हम आज तक खामोश हैं  और वो भी कुछ कहते नहीं
दर्द के नग्मों  में हक़ बस मेरा नजर आता है 


देकर दुआएँ  आज फिर हम पर सितम वो  कर गए
अब क़यामत में उम्मीदों का सवेरा नजर आता है


क्यों रोशनी के खेल में अपना आस का पँछी  जला
हमें अँधेरे में हिफाज़त का बसेरा नजर आता है


इस कदर अनजान हैं  हम आज अपने हाल से
हकीकत में भी ख्वावों का घेरा नजर आता है 


ये दीवानगी अपनी नहीं तो और  फिर क्या है मदन
हर जगह इक शख्श का मुझे  चेहरा नजर आता है


ग़ज़ल (देकर दुआएँ  आज फिर हम पर सितम वो  कर गए)

मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

चंद शेर आपके लिए



एक। 

दर्द मुझसे मिलकर अब मुस्कराता है
जब दर्द को दबा जानकार पिया मैंने


दो.

वक्त की मार सबको सिखाती सबक़ है
ज़िन्दगी चंद सांसों की लगती जुआँ है


तीन.

समय के साथ बहने का मजा कुछ और है यारों
रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है



चार.

जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी
बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

एक शेर आपके नाम





हर जगह हर तरफ मौत दिखती है क्यों 
ये जिंदगानी का कैसा फ़साना हुआ 

मदन मोहन सक्सेना