रविवार, 22 अप्रैल 2012

ग़ज़ल (चार पल की जिन्दगी)


ग़ज़ल (चार पल की जिन्दगी)

कभी गर्दिशों से दोस्ती कभी गम से याराना हुआ
चार पल की जिन्दगी का ऐसे कट जाना हुआ


इस आस में बीती उम्र कोई हमे अपना कहे
अब आज के इस दौर में ये दिल भी बेगाना हुआ

जिस  रोज से देखा उन्हें मिलने लगी मेरी नजर
आँखों से मय पीने लगे मानो की मयखाना हुआ

इस कदर अन्जान हैं  हम आज अपने हाल से
हमसे बोला आइना ये शख्श  बेगाना हुआ



ढल नहीं जाते है लब्ज यू हीँ   रचना में  कभी
कभी गीत उनसे मिल गया ,कभी ग़ज़ल का पाना हुआ..

 

 ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 12 मार्च 2012

ग़ज़ल ( अपनी जिंदगी)



ग़ज़ल ( अपनी जिंदगी)

अपनी जिंदगी गुजारी है ख्बाबों के ही सायें में
 ख्बाबों  में तो अरमानों के जाने कितने मेले हैं  

भुला पायेंगें कैसे हम ,जिनके प्यार के खातिर
सूरज चाँद की माफिक हम दुनिया में अकेले हैं  

महकता है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत ही
मुहब्बत को निभाने में फिर क्यों सारे झमेले हैं  

ये उसकी बदनसीबी गर ,नहीं तो और फिर क्या है
जिसने पाया है बहुत थोड़ा ज्यादा गम ही झेले हैं  

ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 8 जून 2011

ग़ज़ल(ये दुनिया मुस्कराती है)




ग़ज़ल(ये दुनिया मुस्कराती है)

जुदा हो करके के तुमसे अब ,तुम्हारी याद आती है 
मेरे दिलबर तेरी सूरत ही मुझको रास आती है 

कहूं कैसे मैं ये तुमसे बहुत मुश्किल गुजारा  है
भरी दुनियां में बिन तेरे नहीं कोई सहारा है

मुक्कद्दर आज रूठा है और किस्मत आजमाती है
नहीं अब चैन दिल को है ना  मुझको नींद आती है

कदम बहकें हैं अब मेरे ,हुआ चलना भी मुश्किल है
ये मौसम है बहारों  का , रोता आज ये दिल है

ना कोई अब खबर तेरी ,ना मिलती आज पाती है
हालत देखकर मेरी, ये दुनिया मुस्कराती है

बहुत मुश्किल है ये कहना  कि किसने खेल खेला है
उधर तनहा अकेली तुम, इधर ये दिल अकेला है 

पाकर के तनहा मुझको उदासी पास आती है
सुहानी रात मुझको अब नागिन सी डराती है

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना


मंगलवार, 7 जून 2011

ग़ज़ल(हकीकत)






ग़ज़ल(हकीकत)

नजरें मिला के नजरें फिराना ,ये   हमने अब तक सीखा नहीं हैं
बादें भुलाकर कसमें मिटाकर ,वह  कहतें है हमसे मुहब्बत यही हैं

बफाओं के बदले बफा न करना ,ये मेरी शुरू से आदत नहीं हैं
चाहत  भुलाकर दिल को दुखाकर ,वह कहतें है हमसे मुहब्बत यही है

बफाओं के किस्से सुनाते थे हमको,बादें निभाएंगे कहते थे हमसे
मौके पे साथ भी छोड़ा उन्ही ने ,अब कहते है हमसे जरुरत नहीं है 

दुनिया में मिलता है सब कुछ ,गम ही मिला है मुझे इस जहाँ से 
कहने को दुनिया बाले कहें कुछ,मेरे लिए तो हकीकत यही है


खुश रहें बह सदा और फूले फलें ,गम का उन पर भी साया न हो
दिल से मेरे हरदम निकलते दुआ है,खुदा से मेरी इबादत यही है


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

ग़ज़ल(जाने पहचाने)



ग़ज़ल(जाने पहचाने)


वह  हर बात को मेरी दबाने लगते हैं
जब हकीकत हम उनको समझाने लगते हैं

जिस गलती पर हमको बह समझाने लगते है.
बही गलती को फिर बह दोहराने लगते हैं

आज दर्द खिंच कर मेरे पास आने लगतें हैं
शायद दर्द से मेरे रिश्ते पुराने लगतें हैं

दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने  लगतें हैं
मदन दुश्मन आज सारे जाने पहचाने लगते हैं   

प्रस्तुति:

मदन मोहन सक्सेना

रविवार, 5 जून 2011

ग़ज़ल(दर्द )






ग़ज़ल(दर्द )


दर्द  को अपने से कभी रुखसत न कीजिये
दर्द का सहारा तो बस जीने के लिए हैं

पी करके  मर्जे इश्क में बहका न कीजिये
ख़ामोशी की मदिरा तो बस पीने के लिए हैं

फूल से अलगाब की खुशबु  न लीजिये 
क्या प्यार की चर्चा ,बस मदीने के लिए है

टूटे है दिल ,टूटा भरम, और ख्बाब भी टूटे हुये
क्या ये सारी चीज़े उम्र भर सीने के लिए हैं

वक़्त के दरिया में क्यों प्यार के सपनें बहे 
क्या जज्बात की कीमत  चंद  महीने के लिए है 


ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना




  


 

ग़ज़ल (रंगत इश्क की)



ग़ज़ल (रंगत इश्क की)

रंगत इश्क की क्या है ,ये वह  ही जान सकता है
दिल से दिल मिलाने की ,जुर्रत जो किया होगा

तन्हाई में जीना तो उसका मौत से बद्तर
किसी के साथ ख्बाबों में ,जो इक  पल भी जिया होगा 

दुनिया में न जाने क्यों ,पी -पी कर के जीते है    
बही समझेगा मय पीना, जो नजरो से पिया होगा

दर्दे दिल को दीवाने क्यों सीने से लगाते है
मुहब्बत में किसी ने ,शायद उसको दे दिया होगा..


ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना