शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल(दिल भी यार पागल)


 

ग़ज़ल(दिल भी यार पागल)


जिसे चाहा उसे छीना , जो पाया है सहेजा है 
उम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता क्यों हैं 


सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना
देने में ख़ुशी जो है, कोई बिरला  सीखता क्यों है  

कहने को तो , आँखों से नजर आता सभी को है 
अक्सर प्यार में मन से, मुझे फिर दीखता क्यों है 

दिल भी यार पागल है ,ना जाने दीन दुनिया को 
दिल से दिल की बातों पर आखिर रीझता क्यों है

आबाजों की महफ़िल में दिल की कौन सुनता है 
सही चुपचाप  रहता है और झूठा चीखता क्यों है 


ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना 


 

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल(मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र )





ग़ज़ल(मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र )

मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र ,तुझे खोजती है मेरी नजर
तुम्हें हो ख़बर की न हो ख़बर ,मुझे सिर्फ तेरी तलाश है

मेरे साथ तेरा प्यार है ,तो जिंदगी में बहार है
मेरी जिंदगी तेरे दम से है ,इस बात का एहसाश है

तेरे इश्क का है ये असर ,मुझे सुबह शाम की ना  ख़बर
मेरे दिल में तू रहती सदा , तू ना दूर है और ना पास है

ये तो हर किसी का  ख्याल  है ,तेरे रूप की न मिसाल है
कैसें कहूँ  तेरी अहमियत, मेरी जिंदगी में खास है

तेरी झुल्फ जब लहरा गयी , काली घटायें छा गयी
हर पल तुम्हें देखा करू ,आँखों में फिर भी प्यास है

 


ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना  



सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल (बदलाब )




ग़ज़ल (बदलाब )


जिनका प्यार पाने में हमको ज़माने लगे
वह   अब नजरें मिला के   मुस्कराने लगे

राज दिल का कभी जो छिपाते थे हमसे
बातें  दिल की हमें वह  बताने  लगे 

अपना बनाने को  सोचा  था जिनको
वह  अपना हमें अब   बनाने लगे

जिनको देखे बिना आँखे रहती थी प्यासी
वह  अब नजरों से हमको पिलाने लगे

जब जब देखा उन्हें उनसे नजरे मिली
गीत हमसे खुद ब खुद बन जाने लगे

प्यार पाकर के जबसे प्यारी दुनिया रचाई
क्यों हम दुनिया को तब से भुलाने लगे

गीत ग़ज़ल जिसने भी मेरे देखे या सुने
तब से शायर वह  हमको बताने लगे

हाल देखा मेरा तो दुनिया बाले ये बोले
मदन हमको तो दुनिया से बेगाने लगे ...


ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना


 

गुरुवार, 31 जनवरी 2013

ग़ज़ल (पहचान)




ग़ज़ल (पहचान)


कल  तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआ
इक  शख्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान है

बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम न मिल सके
जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अंजान है

गर कहोगें दिन  को दिन तो लोग जानेगें गुनाह 
अब आज के इस दौर में दिखते  नहीं इन्सान है

इक दर्द का एहसास हमको हर समय मिलता रहा
ये बक्त  की साजिश है या फिर बक्त  का एहसान है

गैर बनकर पेश आते, बक्त पर अपने ही लोग
अपनो की पहचान करना अब नहीं आसान है 

प्यासा पथिक और पास में बहता समुन्द्र देखकर 
जिंदगी क्या है मदन , कुछ कुछ हुयी पहचान है 
 


ग़ज़ल
मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

ग़ज़ल (बोल)

ग़ज़ल (बोल)



उसे हम बोल क्या बोलें जो दिल को दर्द दे जाये
सुकूं दे चैन दे दिल को , उसी को बोल बोलेंगें ..

जीवन के सफ़र में जो मुसीबत में भी अपना हो
राज ए दिल मोहब्बत के, उसी से यार खोलेंगें  ..

जब अपनों से और गैरों से मिलते हाथ सबसे हों
किया जिसने भी जैसा है , उसी से यार तोलेंगें ..

अपना क्या, हम तो बस, पानी की ही माफिक हैं
 मिलेगा प्यार से हमसे ,उसी  के यार होलेंगें ..

जितना हो जरुरी ऱब, मुझे उतनी रोशनी देना 
अँधेरे में भी डोलेंगें उजालें में भी डोलेंगें ..
 


ग़ज़ल
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

ग़ज़ल(हम उनसे प्यार कर लेगें )



ग़ज़ल(हम उनसे प्यार कर  लेगें )

बोलेंगे  जो  भी  हमसे  वह  ,हम ऐतवार कर  लेगें      
जो कुछ  भी उनको प्यारा  है ,हम उनसे प्यार कर  लेगें 

वह   मेरे   पास  आयेंगे   ये  सुनकर  के   ही  सपनो  में 
क़यामत  से क़यामत तक हम इंतजार कर लेगें 

मेरे जो भी सपने है और सपनों में जो सूरत है
उसे दिल में हम सज़ा करके नजरें चार कर लेगें

जीवन भर की सब खुशियाँ ,उनके बिन अधूरी है 
अर्पण आज उनको हम जीबन हजार कर देगें 

हमको प्यार है उनसे और करते प्यार वह  हमको 
गर  अपना प्यार सच्चा है तो मंजिल पर कर लेगें



ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 26 दिसंबर 2012

ग़ज़ल(सोच)



 ग़ज़ल(सोच)


कैसी सोच अपनी है किधर हम जा रहें यारों
गर कोई देखना चाहें बतन मेरे बो आ जाये

तिजोरी में भरा धन है मुरझाया सा बचपन है
ग़रीबी भुखमरी में क्यों जीबन बीतता जाये

ना करने का ही ज़ज्बा है ना बातों में ही दम दीखता
हर एक दल में सत्ता की जुगलबंदी नजर आयें .

कभी बाटाँ धर्म ने है कभी जाति में खो जाते
हमारें रह्नुमाओं का, असर सब पर नजर आये

ना खाने को ना पीने को ,ना दो पल चैन जीने को
ये कैसा तंत्र है यारों , ये जल्दी से गुजर जाये


ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

ग़ज़ल (मेरे मालिक मेरे मौला)




ग़ज़ल (मेरे मालिक मेरे मौला)


मेरे मालिक मेरे मौला ये क्या दुनिया बनाई है
किसी के पास सब कुछ है मगर बह खा नहीं पाये


तेरी दुनियां में कुछ बंदें करते काम क्यों गंदें
कि किसी के पास कुछ भी ना, भूखे पेट सो जायें


जो सीधे सादे रहतें हैं मुश्किल में क्यों रहतें है
तेरी बातोँ को तू जाने, समझ अपनी ना कुछ आये


ना रिश्तों की महक दिखती ना बातोँ में ही दम दीखता
क्यों मायूसी ही मायूसी जिधर देखो नज़र आये


तुझे पाने की कोशिश में कहाँ कहाँ मैं नहीं घूमा
जब रोता बच्चा मुस्कराता है तू ही तू नजर आये


गुजारिश अपनी सबसे है कि जीयो और जीने दो
ये जीवन कुछ पलों का है पता कब मौत आ जाये



ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

ग़ज़ल(खेल जिंदगी)

ग़ज़ल(खेल जिंदगी)

दिल के पास हैं लेकिन निगाहों से वह  ओझल हैं
क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी। 

जिनके साथ रहना हैं ,नहीं मिलते क्यों दिल उनसे
खट्टी मीठी यादों को संजोने का है खेल जिंदगी।


किसी के खो गए अपने, किसी ने पा लिए सपनें
क्या पाने और खोने का है खेल जिंदगी।


उम्र बीती और ढोया है, सांसों के जनाजे को
जीवन सफर में हँसने रोने का
है  खेल जिंदगी।


किसी को मिल गयी दौलत, कोई तो पा गया शोहरत
मदन बोले , काटने और बोने का ये खेल जिंदगी।




ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

ग़ज़ल(बहुत मुश्किल)




ग़ज़ल(बहुत मुश्किल)

अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल

  
ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल 


कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम
जुबां से दिल की बातों को है कह पाना बहुत मुश्किल

ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है
क्या खोया और क्या पाया कह पाना बहुत मुश्किल


ग़ज़ल :

मदन मोहन सक्सेना