शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

ग़ज़ल (सपनें खूब मचलते देखे)

 




सपनीली दुनियाँ मेँ यारों सपनें खूब मचलते देखे
रंग बदलती दूनियाँ देखी ,खुद को रंग बदलते देखा

सुबिधाभोगी को तो मैनें एक जगह पर जमते देख़ा
भूखों और गरीबोँ को तो दर दर मैनें चलते देखा

देखा हर मौसम में मैनें अपने बच्चों को कठिनाई में
मैनें टॉमी डॉगी शेरू को, खाते देखा पलते देखा

पैसों की ताकत के आगे गिरता हुआ जमीर मिला
कितना काम जरुरी हो पर उसको मैने टलते देखा

रिश्तें नातें प्यार की बातें ,इनको खूब सिसकते देखा
नए ज़माने के इस पल मेँ अपनों को भी छलते देखा

 



 
ग़ज़ल (सपनें खूब मचलते देखे)


मदन मोहन सक्सेना


सोमवार, 24 नवंबर 2014

ग़ज़ल ( मम्मी तुमको क्या मालूम )








सुबह सुबह अफ़रा तफ़री में फ़ास्ट फ़ूड दे देती माँ तुम 
टीचर क्या क्या देती ताने , मम्मी तुमको क्या मालूम 

क्या क्या रूप बना कर आती ,मम्मी तुम जब लेने आती
लोग कैसे किस्से लगे सुनाने , मम्मी तुमको क्या मालूम 

रोज पापा जाते पैसा पाने , मम्मी तुम घर लगी सजाने 
पूरी कोशिश से पढ़ते हम , मम्मी तुमको क्या मालूम 

घर मंदिर है ,मालूम तुमको पापा को भी मालूम है जब 
झगड़े में क्या बच्चे पाएं , मम्मी तुमको क्या मालूम 

क्यों इतना प्यार जताती हो , मुझको कमजोर बनाती हो 
दूनियाँ बहुत ही जालिम है , मम्मी तुमको क्या मालूम 


ग़ज़ल ( मम्मी तुमको क्या मालूम )




मदन मोहन सक्सेना








सोमवार, 9 दिसंबर 2013

ग़ज़ल (कहने का मतलब)





ग़ज़ल (कहने का मतलब)


कहने का मतलब होता था ,अब ये बात पुरानी  है
जैसा देखा बैसी बातें  .जग की अब ये रीत हो रही

 
साझा करने को ना मिलता , अपने गम में ग़मगीन हैं
स्वार्थ दिखा जिसमें भी यारों उससे केवल प्रीत हो रही


पाने को आतुर रहतें हैं  खोने को तैयार नहीं है
जिम्मेदारी ने
मुहँ मोड़ा ,सुबिधाओं की जीत हो रही

अब खेलों  में है  राजनीति और राजनीति ब्यापार हुई
मुश्किल अब है मालूम होना ,किस से किसकी मीत हो रही 


क्यों अनजानापन लगता है अब, खुद के आज बसेरे में
संग साथ की हार हुई और  तन्हाई की जीत हो रही


ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 4 नवंबर 2013

ग़ज़ल( मुहब्बत के फ़साने )




ग़ज़ल( मुहब्बत के फ़साने )

नजर फ़ेर ली है खफ़ा हो गया हूँ
बिछुड़ कर किसी से जुदा हो गया हूँ

मैं किससे करूँ बेबफाई का शिकबा 
कि खुद रूठकर बेबफ़ा हो गया हूँ 

बहुत उसने चाहा बहुत उसने पूजा 
मुहब्बत का मैं देवता हो गया हूँ 

बसायी थी जिसने दिलों में मुहब्बत
उसी के लिए क्यों बुरा हो गया हूँ 

मेरा नाम अब क्यों लब पर भी आये
मैं अपना नहीं अब दूसरा हो गया हूँ 

मदन सुनाऊँ किसे अब किस्सा ए गम
मुहब्बत में मिटकर फना हो गया हूँ . 



ग़ज़ल प्रस्तुति:

मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

ग़ज़ल (कुर्सी और वोट)









ग़ज़ल (कुर्सी और वोट)

कुर्सी और वोट की खातिर काट काट के सूबे बनते
नेताओं के जाने कैसे कैसे , अब ब्यबहार हुए
 

दिल्ली में कोई भूखा बैठा, कोई अनशन पर बैठ गया
भूख किसे कहतें हैं  नेता  उससे अब दो चार  हुए 


नेता क्या अभिनेता क्या अफसर हो या साधू जी
पग धरते ही जेल के अन्दर सब के सब बीमार हुए

कैसा दौर चला है यारों गंदी हो गयी राजनीती अब
अमन चैन से रहने बाले   दंगे से दो चार हुए

दादी को नहीं दबा मिली और मुन्ने का भी दूध खत्म
कर्फ्यू में मौका परस्त को लाखों के ब्यापार हुए

तिल  का ताड़ बना डाला क्यों आज सियासतदारों ने
आज बापू तेरे देश में, कैसे -कैसे अत्याचार हुए

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई भाई
ख्बाजा साईं के घर में , ये बातें  क्यों बेकार हुए

ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 17 सितंबर 2013

ग़ज़ल (सेक्युलर कम्युनल)




ग़ज़ल (सेक्युलर कम्युनल)


जब से बेटे जबान हो गए 
मुश्किल में क्यों प्राण हो गए 

किस्से सुन सुन के संतों के 
भगवन भी हैरान हो गए 

आ धमके कुछ ख़ास बिदेशी 
घर बाले मेहमान हो गए 

सेक्युलर कम्युनल के चक्कर में 
गाँव गली शमसान हो गए 

कैसा दौर चला है अब ये 
सदन कुश्ती के मैदान हो गए 

बिन माँगें सब राय  दे दिए 
कितनों के अहसान हो गए




ग़ज़ल प्रस्तुति: मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 19 अगस्त 2013

ग़ज़ल (ये कल की बात है)


ग़ज़ल (ये कल की बात है)


उनको तो हमसे प्यार है ये कल की बात है 
कायम ये ऐतबार था ये कल की बात है 

जब से मिली नज़र तो चलता नहीं है बस 
मुझे दिल पर अख्तियार था ये कल की बात है 

अब फूल भी खिलने लगा है निगाहों में 
काँटों से मुझको प्यार था ये कल की बात है 

अब जिनकी बेबफ़ाई के चर्चे हैं हर तरफ 
बह पहले बफादार था ये कल की बात है 

जिसने लगायी आग मेरे घर में आकर के 
बह शख्श मेरा यार था ये कल की बात है 

तन्हाईयों का गम ,जो मुझे दे दिया उन्होनें
बह मेरा गम बेशुमार था ये कल की बात है 



ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 10 जुलाई 2013

ग़ज़ल ( स्वार्थ की तालीम )

ग़ज़ल ( स्वार्थ की तालीम )
 
प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम
दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है फूल  से

दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती के नाम पर
दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल से

बँट  गयी सारी जमी फिर बँट गया ये आसमान
अब खुदा बँटने  लगा है इस तरह की तूल से

सेक्स की रंगीनियों के आज के इस दौर में
स्वार्थ की तालीम अब मिलने लगी स्कूल से

आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से

चार पल की जिंदगी में चंद साँसों का सफ़र
मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से


ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 29 मई 2013

ग़ज़ल ( सब कुछ तो ब्यापार हुआ )


ग़ज़ल ( सब कुछ तो ब्यापार हुआ  )

 
मेरे जिस टुकड़े को  दो पल की दूरी बहुत सताती थी
जीवन के चौथेपन में अब ,बह सात समन्दर पार हुआ  


रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या व्यवहार हुआ  


दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों से
धर्म देखिये कर्म देखिये सब कुछ तो ब्यापार हुआ 


मेरे प्यारे गुलशन को न जानें किसकी नजर लगी है
युवा को अब काम नहीं है बचपन अब बीमार हुआ

जाने कैसे ट्रेन्ड हो गए मम्मी पापा फ्रेंड हो गए
शर्म हया और लाज ना जानें आज कहाँ दो चार हुआ

ताई ताऊ , दादा दादी ,मौसा मौसी  दूर हुएँ अब
हम दो और हमारे दो का ये कैसा परिवार हुआ

ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना


सोमवार, 15 अप्रैल 2013

ग़ज़ल(दीवारें ही दीवारें)


ग़ज़ल(दीवारें ही दीवारें)

दीवारें ही दीवारें नहीं दीखते अब घर यारों 
बड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले है. 

उलझन आज दिल में है ,कैसी आज मुश्किल है 
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं 

जिसे देखो ,बही क्यों आज मायूसी में रहता है 
दुश्मन ,दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैं 

जब जीवन के सफ़र में जो पाया है सहेजा है 
खोया है उसी की चाह में ,ये दिल क्यों मचले है 

समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब  समय ना है 
कि  रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं 



ग़ज़ल  प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना