शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

ग़ज़ल ( मुहब्बत है इश्क़ है प्यार है या फिर कुछ और )



लोग कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती है
हम नजरें भी मिलाते हैं तो चर्चा हो जाती है.

दिल पर क्या गुज़रती है जब  वह  दूर होते हैं
पाते पास उनको हैं  तो रौनक आ जाती  है .

आकर के ख्यालों में क्यों नीदें वे   चुराते हैं
रहते दूर जब हमसे तो हर पल याद आती है.

हमको प्यार है उनसे करते  प्यार वह  हमको
ये बात रहती दिल में है  ये कही नहीं जाती है.

चार पल की जिंदगी में चन्द साँसों का सफर
अपने आजमाते हैं कभी किस्मत आज़माती है .

मुहब्बत है इश्क़ है प्यार है या फिर कुछ और
इक  शख्श की सूरत "मदन " दिल को बस भाती है.

ग़ज़ल ( मुहब्बत है इश्क़ है प्यार है या फिर कुछ और )
मदन मोहन सक्सेना

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