ग़ज़ल ( स्वार्थ की तालीम )
ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम
दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है फूल
से
दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती
के नाम पर
दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल
से
बँट गयी सारी जमी फिर बँट गया ये
आसमान
अब खुदा बँटने लगा है इस तरह की तूल
से
सेक्स की रंगीनियों के आज के इस दौर
में
स्वार्थ की तालीम अब मिलने लगी स्कूल
से
आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से
चार पल की जिंदगी में चंद साँसों का
सफ़र
मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से
ग़ज़ल प्रस्तुति:
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंवाह ... क्या बात है जी ... अलग तरह के शेर हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंutam-**
जवाब देंहटाएंअब खुदा बँटने लगा है इस तरह की तूल से
जवाब देंहटाएंवाह भाई ..
बहुत सुंदर भाव !!
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब और सशक्त गजल
हार्दिक शुभकामनायें
सरल,सहज और बहुत ही समर्थ रचना अपनी बात कहने में । बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंआगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
जवाब देंहटाएंआजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से
वाह! वर्तमान की सटिक व्याख्या ..बधाई!
kya baat hai !
जवाब देंहटाएंचार पल की जिंदगी में चंद साँसों का सफ़र
जवाब देंहटाएंमिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से
बहुत खूब !!!!!!
बहुत सुन्दर रचना...सीधे दिल को छू लेती है..
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग को "ब्लॉग - चिठ्ठा" में शामिल कर लिया गया है। सादर …. आभार।।
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