चार पल की जिन्दगी का ऐसे कट जाना हुआ
इस आस में बीती उम्र कोई हमे अपना कहे
अब आज के इस दौर में ये दिल भी बेगाना हुआ
जिस रोज से देखा उन्हें मिलने लगी मेरी नजर
आँखों से मय पीने लगे मानों की मयखाना हुआइस कदर अन्जान हैं हम आज अपने हाल से
हमसे बोला आइना ये शख्श बेगाना हुआ
ढल नहीं जाते है लब्ज यू हीँ रचना में कभी
कभी गीत उनसे मिल गया ,कभी ग़ज़ल का पाना हुआ..
मदन मोहन सक्सेना
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, बिन गुरु ज्ञान कहाँ से पाऊँ - शिक्षक दिवस की ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंक्या बात मदन जी ...
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