गुरुवार, 2 मई 2024

दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ

 खुदा का नाम लेने में तो हमसे देर हो जाती.
खुदा के नाम से पहले हम उनका नाम लेते हैं..

पाया है सदा उनको खुदा के रूप में दिल में
उनकी बंदगी कर के खुदा को पूज लेते हैं..

न मंदिर में न मस्जिद में न गिरजा में हम जाते हैं
जब नजरें चार उनसे हो ,खुदा के दर्श पाते हैं..

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तुम्हारी याद जब आती तो मिल जाती ख़ुशी हमको
तुमको पास पायेंगे तो मेरा हाल क्या होगा

तुमसे दूर रह करके तुम्हारी याद आती है
मेरे पास तुम होगें तो यादों का फिर क्या होगा

तुम्हारी मोहनी सूरत तो हर पल आँख में रहती
दिल में जो बसी सूरत उस सूरत का फिर क्या होगा

अपनी हर ख़ुशी हमको अकेली ही लगा करती
तुम्हार साथ जब होगा नजारा ही नया होगा

दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ
तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा

मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 2 जनवरी 2023

दुआओं का असर होता 

हुआ इलाज भी मुश्किल ,नहीं मिलती दबा असली  
दुआओं का असर होता  दुआ से काम लेता हूँ

मुझे फुर्सत नहीं यारों कि  माथा टेकुं दर दर पे
अगर कोई डगमगाता  है  उसे मैं थाम लेता हूँ

खुदा का नाम लेने में क्यों  मुझसे  देर हो जाती
खुदा का नाम से पहले मैं उनका नाम लेता हूँ


मुझे इच्छा नहीं यारों की मेरे पास दौलत हो
सुकून हो चैन हो दिल को इसी से काम लेता हूँ


सब कुछ तो  बिका करता  मजबूरी के आलम में
सांसों के जनाज़े  को सुबह से शाम लेता हूँ  


सांसे है तो जीवन है तभी है मूल्य मेहनत  का
जितना  है जरुरी बस उसी का दाम लेता हूँ  



मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 9 फ़रवरी 2022

ग़ज़ल(शाम ऐ जिंदगी)

 ग़ज़ल(शाम ऐ जिंदगी)


आँख  से  अब  नहीं दिख रहा है जहाँ ,आज क्या हो रहा है मेरे संग यहाँ
माँ का रोना नहीं अब मैं सुन पा रहा ,कान मेरे ये दोनों क्यों बहरें हुए.

उम्र भर जिसको अपना मैं कहता रहा ,दूर जानो को बह मुझसे बहता रहा.
आग होती है क्या आज मालूम चला,जल रहा हूँ मैं चुपचाप ठहरे हुए.

शाम ज्यों धीरे धीरे सी ढलने लगी, छोंड तन्हा मुझे भीड़ चलने लगी.
अब तो तन है धुंआ और मन है धुंआ ,आज बदल धुएँ के क्यों गहरे हुए..

ज्यों  जिस्म का पूरा जलना हुआ,उस समय खुद से फिर मेरा मिलना हुआ
एक मुद्दत हुयी मुझको कैदी बने,मैनें जाना नहीं कब से पहरें हुए....

 


मदन मोहन सक्सेना


शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

ग़ज़ल ( वो शख्श मेरा यार था)






उनको तो हमसे प्यार है ये कल की बात है 
कायम ये ऐतबार था ये कल की बात है 

जब से मिली नज़र तो चलता नहीं है बस 
मुझे दिल पर अख्तियार था ये कल की बात है 

अब फूल भी खिलने लगा है निगाहों में 
काँटों से मुझको प्यार था ये कल की बात है 

अब जिनकी बेबफ़ाई के चर्चे हैं हर तरफ 
वह पहले बफादार था ये कल की बात है 

जिसने लगायी आग मेरे घर में आकर के 
 वो शख्श मेरा यार था ये कल की बात है 

तन्हाईयों का गम ,जो मुझे दे दिया उन्होनें
बह मेरा गम बेशुमार था ये कल की बात है 



ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 8 मई 2018

चार पल की जिंदगी में चाँद सांसो का सफ़र




प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम
दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है फूल से

दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती के नाम पर
दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल से

बँट गयी सारी जमी फिर बँट गया ये आसमान
अब खुदा बँटने लगा है इस तरह की तूल से

सेक्स की रंगीनियों के आज के इस दौर में
स्वार्थ की तालीम अब मिलने लगी स्कूल से

आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से

चार पल की जिंदगी में चाँद सांसो का सफ़र
मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से



चार पल की जिंदगी में चाँद सांसो का सफ़र

मदन मोहन सक्सेना