सोमवार, 30 जुलाई 2012

ग़ज़ल (अश्क बहके आए हैं )



ग़ज़ल (
अश्क बहके आए हैं )

जाना जिनको कल अपना आज हुए वह  परायेहैं 
दुनियाँ  के सारे गम आज मेरे  पास आए हैं 

ना  पीने का है आज मौसम ,न काली  सी घटाए हैं 
आज फिर से नैनो में क्यों अश्क बहके आए हैं 

रोशनी से आशियाना यारों अक्सर जलता है
अँधेरा मेरे मन को आज खूब ज्यादा भाए है

जब जब देखा मैंने दिल को ,ये मुस्कराके कहता है
और जगह बाक़ी है, जख्म  कम ही पाए हैं 

अब तो  अपनी किस्मत पर रोना भी नहीं आता
दर्दे दिल को पास रखकर हम हमेशा मुस्कराए हैं 




ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना 




गुरुवार, 19 जुलाई 2012

ग़ज़ल (नए दौर का आगमन )


ग़ज़ल (नए दौर का आगमन )


आगमन नए दौर का आप जिसको कह रहे
वह सेक्स की रंगीनियों की पैर में जंजीर है

सुन चुके हैं बहुत किस्से वीरता पुरुषार्थ के
हर रोज फिर किसी द्रौपदी का खिंच रहा क्यों चीर है

खून से खेली है होली आज के इस दौर में
कह रहे सब आज ये नहीं मिल रहा अब नीर है

मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी
ये ब्यथा अपनी नहीं हर एक की ये पीर है

आज के हालत में किस किस से हम बचकर चले
प्रश्न  लगता है सरल पर ये बहुत गंभीर है

चंद  रुपयों की बदौलत बेचकर हर चीज को
आज हम आबाज देते कि  बेचना जमीर है 


ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 9 जुलाई 2012

ग़ज़ल (वक्त की रफ़्तार )


ग़ज़ल (वक्त    की रफ़्तार )

वक्त    की रफ़्तार  का कुछ भी भरोसा है नहीं
कल तलक था जो सुहाना कल बही विकराल हो

इस तरह से आज पग में फूल से कांटे चुभे है
चांदनी से खौफ लगता ज्यों  कालिमा का जाल हो

ये किसी की बदनसीबी गर नहीं तो और क्या है
याद आने पर किसी की हाल जब बदहाल हो

पास रहकर दूर हैं   और  दूर रहकर पास हैं 
ये गुजारिश है खुदा से  अब मिलन  तत्काल हो

चंद  लम्हों  की धरोहर आज जिनके  पास है
ब्यर्थ  से लगते मदन अब मास  हो या साल हो

ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना 

रविवार, 8 जुलाई 2012

ग़ज़ल (ज़ालिम दुनियाँ )



 ग़ज़ल (ज़ालिम दुनियाँ )


ज़ालिम लगी दुनिया हमें हर शख्श  बेगाना लगा
हर पल हमें धोखे मिले अपने ही ऐतबार से

नफरत से की गयी चोट से हर जख्म हमने सह लिया
घायल हुए उस रोज हम जिस रोज मारा प्यार से

प्यार के अहसास से जब जब रहे हम बेख़बर 
तब तब लगा हमको की हम जी रहे बेकार से

इजहार राज ए  दिल का वह जिस रोज मिल करने लगे
उस रोज से हम पा रहे खुशबु भी देखो खार से

जब प्यार से इनकार हो तो इकरार से है वो भला
मजा पाने लगा है अब ये मदन इकरार का इंकार से

क्या कहूँ कि आज कल का ये समय कैसा तो है
आदमी  ब्यापार से तो  प्यार करता ,दूर रहता प्यार से



ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना