रविवार, 28 दिसंबर 2014

ग़ज़ल (पिज्जा बर्गर कोक भा गया नए ज़माने के लोगों को )




ग़ज़ल (पिज्जा बर्गर कोक भा गया नए ज़माने के लोगों को )


माता मम्मी अम्मा कहकर बच्चे प्यार जताते थे
मम्मी अब तो ममी हो गयीं प्यारे पापा डैड हो गए

पिज्जा बर्गर कोक भा गया नए ज़माने के लोगों को
दही जलेबी हलुआ पूड़ी सब के सब क्यों  बैड हो गए

गौशाला में गाय नहीं है ,दिखती अब चौराहों में
घर घर कुत्ते राज कर रहें  मालिक उनके मैड हो गए

कैसे कैसे गीत  हुये अब शोरनुमा संगीत हुये अब
देख दशा और रंग ढंग क्यों तानसेन भी सैड हो गए

दादी बाबा मम्मी पापा चुप चुप घर में रहतें हैं
नए दौर में बच्चे ही अब घर के मानों हैड हो गए ।





प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना


नोट :प्रस्तुत ग़ज़ल में मैनें बिदेशी भाषा (अंग्रेजी ) के कुछ शब्दों का इस्तेमाल किया है. आजकल का समय जब कोई भी चीज शुद्ध मिलना नामुमकिन सा होता लग रहा है और फ्यूज़न के इस दौर में मेरा प्रयोग कहाँ तक सफल रहा . आप जरुर अबगत कराइएगा .


शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

ग़ज़ल (सपनें खूब मचलते देखे)

 




सपनीली दुनियाँ मेँ यारों सपनें खूब मचलते देखे
रंग बदलती दूनियाँ देखी ,खुद को रंग बदलते देखा

सुबिधाभोगी को तो मैनें एक जगह पर जमते देख़ा
भूखों और गरीबोँ को तो दर दर मैनें चलते देखा

देखा हर मौसम में मैनें अपने बच्चों को कठिनाई में
मैनें टॉमी डॉगी शेरू को, खाते देखा पलते देखा

पैसों की ताकत के आगे गिरता हुआ जमीर मिला
कितना काम जरुरी हो पर उसको मैने टलते देखा

रिश्तें नातें प्यार की बातें ,इनको खूब सिसकते देखा
नए ज़माने के इस पल मेँ अपनों को भी छलते देखा

 



 
ग़ज़ल (सपनें खूब मचलते देखे)


मदन मोहन सक्सेना


सोमवार, 24 नवंबर 2014

ग़ज़ल ( मम्मी तुमको क्या मालूम )








सुबह सुबह अफ़रा तफ़री में फ़ास्ट फ़ूड दे देती माँ तुम 
टीचर क्या क्या देती ताने , मम्मी तुमको क्या मालूम 

क्या क्या रूप बना कर आती ,मम्मी तुम जब लेने आती
लोग कैसे किस्से लगे सुनाने , मम्मी तुमको क्या मालूम 

रोज पापा जाते पैसा पाने , मम्मी तुम घर लगी सजाने 
पूरी कोशिश से पढ़ते हम , मम्मी तुमको क्या मालूम 

घर मंदिर है ,मालूम तुमको पापा को भी मालूम है जब 
झगड़े में क्या बच्चे पाएं , मम्मी तुमको क्या मालूम 

क्यों इतना प्यार जताती हो , मुझको कमजोर बनाती हो 
दूनियाँ बहुत ही जालिम है , मम्मी तुमको क्या मालूम 


ग़ज़ल ( मम्मी तुमको क्या मालूम )




मदन मोहन सक्सेना