ग़ज़ल(इक जैसी कहानी)
हर लम्हा तन्हाई का एहसास मुझकों होता है
जबकि दोस्तों के बीच अपनी गुज़री जिंदगानी है
क्यों अपने जिस्म में केवल ,रंगत खून की दिखती
औरों का लहू बहता ,तो सबके लिए पानी है
खुद को भूल जाने की ग़लती सबने कर दी है
हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है
दौलत के नशे में जो अब दिन को रात कहतें है
हर गल्तीं की कीमत भी, यहीं उनको चुकानी है
वक़्त की रफ़्तार का कुछ भी भरोसा है नहीं
किसको जीत मिल जाये, किसको हार पानी है
सल्तनत ख्बाबो की मिल जाये तो अपने लिए बेहतर है
दौलत आज है तो क्या ,आखिर कल तो जानी है
ग़ज़ल:
bahoot achha likha hai ji aapne aur wo bhi hindi mein hi kya baat hai humein bahoot pasand aaya
जवाब देंहटाएंbhagwan aapko aur badi soch de
बहुत बढ़िया गजल सर जी..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...
:-)
प्रोत्साहन के लिए आपका हृदयसे आभार
हटाएंwaah....bahut badhiya gajal...laazwab :)
जवाब देंहटाएंआपकी सार्थक प्रतिक्रया हेतु शुभकामनाओं सहित हार्दिक साभार धन्यबाद ……
हटाएंआपकी गजल बहुत अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंआपकी सार्थक प्रतिक्रया हेतु शुभकामनाओं सहित हार्दिक साभार धन्यबाद ……
हटाएंबहुत बढ़िया गज़ल.....
जवाब देंहटाएंअनु
आपकी सार्थक प्रतिक्रया हेतु शुभकामनाओं सहित हार्दिक साभार धन्यबाद ……
हटाएंbahut sundar prastuti....
जवाब देंहटाएंbahut khubsurat
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