सजा क्या खूब मिलती है किसी से दिल लगाने की
तन्हाई की महफ़िल में आदत हो गयी गाने की
हर पल याद रहती है निगाहों में बसी सूरत
तमन्ना अपनी रहती है खुद को भूल जाने की
उम्मीदों का काजल जब से आँखों में लगाया है
कोशिश पूरी होती है पत्थर से प्यार पाने की
अरमानो के मेले में जब ख्बाबों के महल टूटे
बारी तब फिर आती है अपनों को आजमाने की
मर्जे इश्क में अक्सर हुआ करता है ऐसा भी
जीने पर हुआ करती है ख्वाहिश मौत पाने की
( ग़ज़ल )हर पल याद रहती है निगाहों में बसी सूरत
मदन मोहन सक्सेना
Emotional and heart-felt words... :-)
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-08-2016) को "तूफ़ान से कश्ती निकाल के" (चर्चा अंक-2430) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह,क्या कहने ?
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना पढ़कर खुशी हुई ...
जवाब देंहटाएंएक नई दिशा !
Badhiya
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