दिल में दर्द जगाता क्यों हैं
गर दबा नहीं है दर्द की तुझ पे
दिल में दर्द जगाता क्यों हैं
जो बीच सफर में साथ छोड़ दे
उन अपनों से मिलबाता क्यों हैं
क्यों भूखा नंगा ब्याकुल बचपन
पत्थर भर पेट खाता क्यों हैं
अपने ,सपने कब सच होते
तन्हाई में डर जाता क्यों हैं
चुप रह कर सब जुल्म सह रहे
अपनी बारी पर चिल्लाता क्यों हैं
मदन मोहन सक्सेना
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-12-2016) को "हार नहीं मानूँगा रार नहीं ठानूँगा" (चर्चा अंक-2567) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Excellent Article. Thanks for sharing. I like to read...
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