शुक्रवार, 8 मार्च 2013

ग़ज़ल(अपने दिल की दास्ताँ )






ग़ज़ल(अपने दिल की दास्ताँ )


मिली दौलत ,मिली शोहरत,मिला है मान उसको क्यों 
मौका जानकर अपनी जो बात बदल जाता है .


किसी का दर्द पाने की तमन्ना जब कभी उपजे 
जीने का नजरिया फिर उसका बदल जाता है  ..

चेहरे की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
तन्हाई के आलम में ये अक्सर बदल जाता है ...


किसको दोस्त माने हम और किसको गैर कह दें हम 
जरुरत पर सभी का जब हुलिया बदल जाता है ....

दिल भी यार पागल है ना जाने दीन दुनिया को 
किसी पत्थर की मूरत पर अक्सर मचल जाता है .....

क्या बताएं आपको हम अपने दिल की दास्ताँ 
जितना दर्द मिलता है ये उतना संभल जाता है ......



ग़ज़ल प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना  




 

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल(दिल भी यार पागल)


 

ग़ज़ल(दिल भी यार पागल)


जिसे चाहा उसे छीना , जो पाया है सहेजा है 
उम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता क्यों हैं 


सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना
देने में ख़ुशी जो है, कोई बिरला  सीखता क्यों है  

कहने को तो , आँखों से नजर आता सभी को है 
अक्सर प्यार में मन से, मुझे फिर दीखता क्यों है 

दिल भी यार पागल है ,ना जाने दीन दुनिया को 
दिल से दिल की बातों पर आखिर रीझता क्यों है

आबाजों की महफ़िल में दिल की कौन सुनता है 
सही चुपचाप  रहता है और झूठा चीखता क्यों है 


ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना 


 

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल(मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र )





ग़ज़ल(मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र )

मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र ,तुझे खोजती है मेरी नजर
तुम्हें हो ख़बर की न हो ख़बर ,मुझे सिर्फ तेरी तलाश है

मेरे साथ तेरा प्यार है ,तो जिंदगी में बहार है
मेरी जिंदगी तेरे दम से है ,इस बात का एहसाश है

तेरे इश्क का है ये असर ,मुझे सुबह शाम की ना  ख़बर
मेरे दिल में तू रहती सदा , तू ना दूर है और ना पास है

ये तो हर किसी का  ख्याल  है ,तेरे रूप की न मिसाल है
कैसें कहूँ  तेरी अहमियत, मेरी जिंदगी में खास है

तेरी झुल्फ जब लहरा गयी , काली घटायें छा गयी
हर पल तुम्हें देखा करू ,आँखों में फिर भी प्यास है

 


ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना  



सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल (बदलाब )




ग़ज़ल (बदलाब )


जिनका प्यार पाने में हमको ज़माने लगे
वह   अब नजरें मिला के   मुस्कराने लगे

राज दिल का कभी जो छिपाते थे हमसे
बातें  दिल की हमें वह  बताने  लगे 

अपना बनाने को  सोचा  था जिनको
वह  अपना हमें अब   बनाने लगे

जिनको देखे बिना आँखे रहती थी प्यासी
वह  अब नजरों से हमको पिलाने लगे

जब जब देखा उन्हें उनसे नजरे मिली
गीत हमसे खुद ब खुद बन जाने लगे

प्यार पाकर के जबसे प्यारी दुनिया रचाई
क्यों हम दुनिया को तब से भुलाने लगे

गीत ग़ज़ल जिसने भी मेरे देखे या सुने
तब से शायर वह  हमको बताने लगे

हाल देखा मेरा तो दुनिया बाले ये बोले
मदन हमको तो दुनिया से बेगाने लगे ...


ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना


 

गुरुवार, 31 जनवरी 2013

ग़ज़ल (पहचान)




ग़ज़ल (पहचान)


कल  तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआ
इक  शख्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान है

बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम न मिल सके
जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अंजान है

गर कहोगें दिन  को दिन तो लोग जानेगें गुनाह 
अब आज के इस दौर में दिखते  नहीं इन्सान है

इक दर्द का एहसास हमको हर समय मिलता रहा
ये बक्त  की साजिश है या फिर बक्त  का एहसान है

गैर बनकर पेश आते, बक्त पर अपने ही लोग
अपनो की पहचान करना अब नहीं आसान है 

प्यासा पथिक और पास में बहता समुन्द्र देखकर 
जिंदगी क्या है मदन , कुछ कुछ हुयी पहचान है 
 


ग़ज़ल
मदन मोहन सक्सेना