ग़ज़ल(बात अपने दिल की)
सोचकर हैरान हैं हम , क्या हमें अब हो गया है
चैन अब दिल को नहीं है ,नींद क्यों आती नहीं है
बादियों में भी गये हम ,शायद आ जाये सुकून
याद उनकी अब हमारे दिल से क्यों जाती नहीं है
हाल क्या है आज अपना ,कुछ खबर हमको नहीं है
देखकर मेरी ये हालत , तरस क्यों खाती नहीं है
हाल क्या है आज उनका ,क्या याद उनको है हमारी
हाल क्या है आज उनका ,क्या याद उनको है हमारी
किस तरह कैसे कहें हम ,मिलती हमें पाती नहीं है
चार पल की जिंदगी लग रही सदियों की माफ़िक
चार पल की जिंदगी क्यों बीत अब जाती नहीं है
किस तरह कह दे मदन जो बात उन तक पहुंच जाये
बात अपने दिल की क्यों अब लिखी जाती नहीं है
ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना