मंगलवार, 17 सितंबर 2013

ग़ज़ल (सेक्युलर कम्युनल)




ग़ज़ल (सेक्युलर कम्युनल)


जब से बेटे जबान हो गए 
मुश्किल में क्यों प्राण हो गए 

किस्से सुन सुन के संतों के 
भगवन भी हैरान हो गए 

आ धमके कुछ ख़ास बिदेशी 
घर बाले मेहमान हो गए 

सेक्युलर कम्युनल के चक्कर में 
गाँव गली शमसान हो गए 

कैसा दौर चला है अब ये 
सदन कुश्ती के मैदान हो गए 

बिन माँगें सब राय  दे दिए 
कितनों के अहसान हो गए




ग़ज़ल प्रस्तुति: मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 19 अगस्त 2013

ग़ज़ल (ये कल की बात है)


ग़ज़ल (ये कल की बात है)


उनको तो हमसे प्यार है ये कल की बात है 
कायम ये ऐतबार था ये कल की बात है 

जब से मिली नज़र तो चलता नहीं है बस 
मुझे दिल पर अख्तियार था ये कल की बात है 

अब फूल भी खिलने लगा है निगाहों में 
काँटों से मुझको प्यार था ये कल की बात है 

अब जिनकी बेबफ़ाई के चर्चे हैं हर तरफ 
बह पहले बफादार था ये कल की बात है 

जिसने लगायी आग मेरे घर में आकर के 
बह शख्श मेरा यार था ये कल की बात है 

तन्हाईयों का गम ,जो मुझे दे दिया उन्होनें
बह मेरा गम बेशुमार था ये कल की बात है 



ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 10 जुलाई 2013

ग़ज़ल ( स्वार्थ की तालीम )

ग़ज़ल ( स्वार्थ की तालीम )
 
प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम
दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है फूल  से

दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती के नाम पर
दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल से

बँट  गयी सारी जमी फिर बँट गया ये आसमान
अब खुदा बँटने  लगा है इस तरह की तूल से

सेक्स की रंगीनियों के आज के इस दौर में
स्वार्थ की तालीम अब मिलने लगी स्कूल से

आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से

चार पल की जिंदगी में चंद साँसों का सफ़र
मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से


ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 29 मई 2013

ग़ज़ल ( सब कुछ तो ब्यापार हुआ )


ग़ज़ल ( सब कुछ तो ब्यापार हुआ  )

 
मेरे जिस टुकड़े को  दो पल की दूरी बहुत सताती थी
जीवन के चौथेपन में अब ,बह सात समन्दर पार हुआ  


रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या व्यवहार हुआ  


दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों से
धर्म देखिये कर्म देखिये सब कुछ तो ब्यापार हुआ 


मेरे प्यारे गुलशन को न जानें किसकी नजर लगी है
युवा को अब काम नहीं है बचपन अब बीमार हुआ

जाने कैसे ट्रेन्ड हो गए मम्मी पापा फ्रेंड हो गए
शर्म हया और लाज ना जानें आज कहाँ दो चार हुआ

ताई ताऊ , दादा दादी ,मौसा मौसी  दूर हुएँ अब
हम दो और हमारे दो का ये कैसा परिवार हुआ

ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना


सोमवार, 15 अप्रैल 2013

ग़ज़ल(दीवारें ही दीवारें)


ग़ज़ल(दीवारें ही दीवारें)

दीवारें ही दीवारें नहीं दीखते अब घर यारों 
बड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले है. 

उलझन आज दिल में है ,कैसी आज मुश्किल है 
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं 

जिसे देखो ,बही क्यों आज मायूसी में रहता है 
दुश्मन ,दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैं 

जब जीवन के सफ़र में जो पाया है सहेजा है 
खोया है उसी की चाह में ,ये दिल क्यों मचले है 

समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब  समय ना है 
कि  रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं 



ग़ज़ल  प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना