गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016
मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016
चंद शेर आपके लिए
एक।
दर्द मुझसे मिलकर अब मुस्कराता है
जब दर्द को दबा जानकार पिया मैंने
दो.
वक्त की मार सबको सिखाती सबक़ है
ज़िन्दगी चंद सांसों की लगती जुआँ है
तीन.
समय के साथ बहने का मजा कुछ और है यारों
रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है
चार.
जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी
बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
मंगलवार, 12 जनवरी 2016
मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ४ ,जनबरी २०१६ में
प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ४ ,जनबरी २०१६ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .
ग़ज़ल (हक़ीकत)
बह हर बात को मेरी क्यों दबाने लगते हैं
जब हक़ीकत हम उनको समझाने लगते हैं
जिस गलती पर हमको बह समझाने लगते है
बह उस गलती को फिर क्यों दोहराने लगते हैं
दर्द आज खिंच कर मेरे पास आने लगते हैं
शायद दर्द से अपने रिश्ते पुराने लगते हैं
क्यों मुहब्बत के गज़ब अब फ़साने लगते हैं
आज जरुरत पर रिश्तें लोग बनाने लागतें हैं
दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने लगते हैं
मदन दुश्मन आज सारे जाने पहचाने लगते है
उनकी मुहब्बत का असर कुछ ऐसा हुआ है
ख्याल आने पे बिन बजह हम मुस्कराने लगते हैं।
ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना
मंगलवार, 22 दिसंबर 2015
ग़ज़ल ( दर्द से मेरे रिश्ते पुराने लगतें हैं)
जब हकीकत हम उनको समझाने लगते हैं
जिस गलती पर हमको वह समझाने लगते है.
बही गलती को फिर वह दोहराने लगते हैं
आज दर्द खिंच कर मेरे पास आने लगतें हैं
शायद दर्द से मेरे रिश्ते पुराने लगतें हैं
दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने लगतें हैं
मदन दुश्मन आज सारे जाने पहचाने लगते हैं
उनकी मुहब्ब्बत का असर कुछ ऐसा हुआ है
ख्याल आने पे बिन बजह हम मुस्कराने लगते हैं
ग़ज़ल ( दर्द से मेरे रिश्ते पुराने लगतें हैं)
मदन मोहन सक्सेना
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