सोमवार, 15 अप्रैल 2013

ग़ज़ल(दीवारें ही दीवारें)


ग़ज़ल(दीवारें ही दीवारें)

दीवारें ही दीवारें नहीं दीखते अब घर यारों 
बड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले है. 

उलझन आज दिल में है ,कैसी आज मुश्किल है 
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं 

जिसे देखो ,बही क्यों आज मायूसी में रहता है 
दुश्मन ,दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैं 

जब जीवन के सफ़र में जो पाया है सहेजा है 
खोया है उसी की चाह में ,ये दिल क्यों मचले है 

समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब  समय ना है 
कि  रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं 



ग़ज़ल  प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना  
 

सोमवार, 25 मार्च 2013

ग़ज़ल(बात अपने दिल की)



ग़ज़ल(बात अपने दिल की)

सोचकर हैरान हैं  हम , क्या हमें अब हो गया है
चैन अब दिल को नहीं है ,नींद क्यों  आती नहीं है

बादियों में भी गये  हम ,शायद आ जाये सुकून
याद उनकी अब हमारे दिल से क्यों  जाती नहीं है

हाल क्या है आज अपना ,कुछ खबर हमको नहीं है 
देखकर मेरी ये हालत  , तरस क्यों खाती नहीं है

हाल क्या है आज उनका ,क्या याद उनको है हमारी 
किस तरह कैसे कहें हम  ,मिलती हमें पाती नहीं है  

चार पल की जिंदगी लग रही सदियों की माफ़िक 
चार पल की जिंदगी क्यों  बीत अब जाती नहीं है

किस तरह कह दे मदन जो बात उन तक पहुंच जाये
बात अपने दिल की क्यों  अब लिखी जाती नहीं है

ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना 


शुक्रवार, 8 मार्च 2013

ग़ज़ल(अपने दिल की दास्ताँ )






ग़ज़ल(अपने दिल की दास्ताँ )


मिली दौलत ,मिली शोहरत,मिला है मान उसको क्यों 
मौका जानकर अपनी जो बात बदल जाता है .


किसी का दर्द पाने की तमन्ना जब कभी उपजे 
जीने का नजरिया फिर उसका बदल जाता है  ..

चेहरे की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
तन्हाई के आलम में ये अक्सर बदल जाता है ...


किसको दोस्त माने हम और किसको गैर कह दें हम 
जरुरत पर सभी का जब हुलिया बदल जाता है ....

दिल भी यार पागल है ना जाने दीन दुनिया को 
किसी पत्थर की मूरत पर अक्सर मचल जाता है .....

क्या बताएं आपको हम अपने दिल की दास्ताँ 
जितना दर्द मिलता है ये उतना संभल जाता है ......



ग़ज़ल प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना  




 

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल(दिल भी यार पागल)


 

ग़ज़ल(दिल भी यार पागल)


जिसे चाहा उसे छीना , जो पाया है सहेजा है 
उम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता क्यों हैं 


सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना
देने में ख़ुशी जो है, कोई बिरला  सीखता क्यों है  

कहने को तो , आँखों से नजर आता सभी को है 
अक्सर प्यार में मन से, मुझे फिर दीखता क्यों है 

दिल भी यार पागल है ,ना जाने दीन दुनिया को 
दिल से दिल की बातों पर आखिर रीझता क्यों है

आबाजों की महफ़िल में दिल की कौन सुनता है 
सही चुपचाप  रहता है और झूठा चीखता क्यों है 


ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना 


 

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल(मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र )





ग़ज़ल(मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र )

मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र ,तुझे खोजती है मेरी नजर
तुम्हें हो ख़बर की न हो ख़बर ,मुझे सिर्फ तेरी तलाश है

मेरे साथ तेरा प्यार है ,तो जिंदगी में बहार है
मेरी जिंदगी तेरे दम से है ,इस बात का एहसाश है

तेरे इश्क का है ये असर ,मुझे सुबह शाम की ना  ख़बर
मेरे दिल में तू रहती सदा , तू ना दूर है और ना पास है

ये तो हर किसी का  ख्याल  है ,तेरे रूप की न मिसाल है
कैसें कहूँ  तेरी अहमियत, मेरी जिंदगी में खास है

तेरी झुल्फ जब लहरा गयी , काली घटायें छा गयी
हर पल तुम्हें देखा करू ,आँखों में फिर भी प्यास है

 


ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना