बुधवार, 12 अप्रैल 2017

इस आस में बीती उम्र कोई हमें अपना कहे


कभी गर्दिशों से दोस्ती कभी गम से याराना हुआ
चार पल की जिन्दगी का ऐसे कट जाना हुआ

इस आस में बीती उम्र कोई हमें अपना कहे
अब आज के इस दौर में ये दिल भी बेगाना हुआ

जिस  रोज से देखा उन्हें मिलने लगी मेरी नजर
आँखों से मय पीने लगे मानो कि मयखाना हुआ

इस कदर अन्जान हैं  हम आज अपने हाल से
मिलकर के बोला आइना ये शख्श  दीवाना हुआ

ढल नहीं जाते है लब्ज ऐसे रचना में  कभी
कभी गीत उनसे मिल गया ,कभी ग़ज़ल का पाना हुआ

ग़ज़ल ( इस आस में बीती उम्र कोई हमें अपना कहे)

मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 10 मार्च 2017

ग़ज़ल (चलो हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है )





मन से मन भी मिल जाये , तन से तन भी मिल जाये
प्रियतम ने प्रिया से आज मन की बात खोली है

मौसम आज रंगों का छायी अब खुमारी है
चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है

ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है

क्या जीजा हों कि साली हों ,देवर हो या भाभी हो
दिखे रंगनें में रंगानें में , सभी मशगूल होली है

ना शिकबा अब रहे कोई , ना ही दुश्मनी पनपे
गले अब मिल भी जाओं सब, आयी आज होली है

प्रियतम क्या प्रिया क्या अब सभी रंगने को आतुर हैं
चलो हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है .

होली की अग्रिम शुभकामनाएं
ग़ज़ल (चलो हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है )

मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

दिल में दर्द जगाता क्यों हैं




गर दबा नहीं है दर्द की तुझ पे
दिल में दर्द जगाता क्यों हैं

जो बीच सफर में साथ छोड़ दे
उन अपनों से मिलबाता क्यों हैं

क्यों भूखा नंगा ब्याकुल बचपन
पत्थर भर पेट खाता क्यों हैं

अपने ,सपने कब सच होते
तन्हाई में डर जाता क्यों हैं

चुप रह कर सब जुल्म सह रहे
अपनी बारी पर चिल्लाता क्यों हैं



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

दिल में दर्द जगाता क्यों हैं

गर दबा नहीं है दर्द की तुझ पे
दिल में दर्द जगाता क्यों हैं

जो बीच सफर में साथ छोड़ दे
उन अपनों से मिलबाता क्यों हैं

क्यों भूखा नंगा ब्याकुल बचपन
पत्थर भर पेट खाता क्यों हैं

अपने ,सपने कब सच होते
तन्हाई में डर जाता क्यों हैं

चुप रह कर सब जुल्म सह रहे
अपनी बारी पर चिल्लाता क्यों हैं 

मदन मोहन सक्सेना