रविवार, 3 जून 2012

ग़ज़ल (चोट)

ग़ज़ल (चोट)


जालिम लगी दुनिया हमें हर शख्श  बेगाना लगा
हर पल हमें धोखे मिले अपने ही ऐतबार से

नफरत से की गयी चोट से हर जख्म हमने सह लिया
घायल हुए उस रोज हम जिस रोज मारा प्यार से

प्यार के एहसास   से जब जब रहे हम बेखबर
तब तब लगा हमको की हम जी रहे बेकार से

इजहार राजे दिल का बो जिस रोज मिल करने लगे
उस रोज से हम पा रहे खुशबु भी देखो खार से

जब प्यार से इंकार हो तो इकरार से है बो भला
मजा पाने लगा है अब ये मदन इकरार का इंकार से


ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

4 टिप्‍पणियां:

  1. नफरत से की गयी चोट से हर जखम हमने सह लिया
    घायल हुए उस रोज हम जिस रोज मारा प्यार से

    बहुत बढ़िया सर!

    सादर
    ------
    ‘जो मेरा मन कहे’ पर आपका स्वागत है

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  2. वाह बहुत खूबसूरत अहसास Madan Mohan सक्सेना जी... हर लफ्ज़ में आपने भावों की बहुत गहरी अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है... बधाई आपको... सादर वन्दे...

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  3. भाग दौड़ के इस दौर में समय निकलकर रचना पड़ने और पसंद करने के लिए बहुत बहुत साधुबाद.इस हौस्ला आफज़ाई के लिए तहे दिल से आप सब का शुक्रिया .

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