गुरुवार, 21 जून 2012

ग़ज़ल (अपनी अपनी किस्मत)



ग़ज़ल (अपनी अपनी किस्मत)


गजब दुनिया बनाई है गजब हैं  लोग दुनिया के
मुलायम मलमली बिस्तर में अक्सर वो  नहीं सोते 

यहाँ  हर रोज सपने  क्यों, दम अपना  तोड़ देते हैं 
नहीं है पास में बिस्तर ,वो  नींदें चैन की सोते 

किसी के पास फुर्सत है  फुर्सत ही रहा करती 
इच्छा है कुछ करने की  पर मौके ही नहीं होते 

जिसे मौका दिया हमने   कुछ न कुछ करेगा वो 
किया कुछ भी नहीं उसने   सपने रोज वो बोते 

नहीं है कोई भी रोता ,  किसी और  के लिए
सब अपनी अपनी किस्मत को लेकर खूब रोते

ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

7 टिप्‍पणियां:

  1. कल 22/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचना पसंद करने और बहुमूल्य सन्देश के लिए आप सभी का तहे दिल से हार्दिक आभार .

      हटाएं
  2. बहुत बढ़िया गज़ल.............
    हर शेर दिल को छूता हुआ.....

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचना पसंद करने और बहुमूल्य सन्देश के लिए आप सभी का तहे दिल से हार्दिक आभार .

      हटाएं
  3. किसी के पास फुर्सत है फुर्सत ही रहा करती
    इच्छा है कुछ करने की पर मौके ही नहीं होते ,,,,panktiyaan khoobsoorat ban padri hain,vaise to poore sher hriday ko chhoone vaale hain.

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. गजब दुनिया बनाई है गजब हैं लोग दुनिया के
    मुलायम मलमली बिस्तर में अक्सर बो नहीं सोते


    यहाँ हर रोज सपने क्यों, दम अपना तोड़ देते है
    नहीं है पास में बिस्तर ,बो नींदें चैन की सोते.
    बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं