मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

ग़ज़ल (कुर्सी और वोट)









ग़ज़ल (कुर्सी और वोट)

कुर्सी और वोट की खातिर काट काट के सूबे बनते
नेताओं के जाने कैसे कैसे , अब ब्यबहार हुए
 

दिल्ली में कोई भूखा बैठा, कोई अनशन पर बैठ गया
भूख किसे कहतें हैं  नेता  उससे अब दो चार  हुए 


नेता क्या अभिनेता क्या अफसर हो या साधू जी
पग धरते ही जेल के अन्दर सब के सब बीमार हुए

कैसा दौर चला है यारों गंदी हो गयी राजनीती अब
अमन चैन से रहने बाले   दंगे से दो चार हुए

दादी को नहीं दबा मिली और मुन्ने का भी दूध खत्म
कर्फ्यू में मौका परस्त को लाखों के ब्यापार हुए

तिल  का ताड़ बना डाला क्यों आज सियासतदारों ने
आज बापू तेरे देश में, कैसे -कैसे अत्याचार हुए

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई भाई
ख्बाजा साईं के घर में , ये बातें  क्यों बेकार हुए

ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

7 टिप्‍पणियां:

  1. आज की राजनीती से हम सब बेज़ार हुए ...आप की चिंता वाजिब है !
    शुभकामनायें!

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  2. सामयिक सार्थक अभिव्यक्ति
    नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें

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  3. Bahut hi sundar va prabhavshali. Badhai.
    Mai bhi Hindi me type karne ke liye Blogspot hi me karta raha hun. Kintu idhar 10 din se kuchh nahi kar pa raha hun - kyonki Hindi ka option wala ICON hat gaya aur Choose language for Transliteration hai kintu usme koi language ka naam nahi ata hai. Is bare me yadi apka koi anubhav ho to zarur bataiyega.
    V.C. Rai 'Naya'


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  4. आपकी इस उम्दा रचना को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -२२ निविया के मन से में शामिल किया गया है कृपया अवलोकनार्थ पधारे

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  5. कुर्सी और वोट की खातिर काट काट के सूबे बनते
    नेताओं के जाने कैसे कैसे , अब ब्यबहार हुए

    प्रासंगिक विडम्बन।

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