शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

ग़ज़ल (दर्दे दिल)



ग़ज़ल (दर्दे दिल)

रंगत इश्क की क्या है ,ये वह  ही जान सकता है
दिल से दिल मिलाने की ,जुर्रत जो किया होगा

तन्हाई में जीना तो उसका मौत से बद्तर
किसी के साथ ख्बाबों में ,जो इक  पल भी जिया होगा 

दुनिया में न जाने क्यों ,पी -पी कर के जीते है    
बही समझेगा मय पीना, जो नज़रों  से पिया होगा

दर्दे दिल को दीवाने क्यों सीने से लगाते है
मुहब्बत में किसी ने ,शायद उसको दे दिया होगा..



ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

1 टिप्पणी:

  1. तन्हाई में जीना तो उसका मौत से बद्तर
    किसी के साथ ख्बाबों में ,जो इक पल भी जिया होगा
    ..वाह! बहुत खूब कहा आपने!

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