सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल(मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र )





ग़ज़ल(मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र )

मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र ,तुझे खोजती है मेरी नजर
तुम्हें हो ख़बर की न हो ख़बर ,मुझे सिर्फ तेरी तलाश है

मेरे साथ तेरा प्यार है ,तो जिंदगी में बहार है
मेरी जिंदगी तेरे दम से है ,इस बात का एहसाश है

तेरे इश्क का है ये असर ,मुझे सुबह शाम की ना  ख़बर
मेरे दिल में तू रहती सदा , तू ना दूर है और ना पास है

ये तो हर किसी का  ख्याल  है ,तेरे रूप की न मिसाल है
कैसें कहूँ  तेरी अहमियत, मेरी जिंदगी में खास है

तेरी झुल्फ जब लहरा गयी , काली घटायें छा गयी
हर पल तुम्हें देखा करू ,आँखों में फिर भी प्यास है

 


ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना  



सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल (बदलाब )




ग़ज़ल (बदलाब )


जिनका प्यार पाने में हमको ज़माने लगे
वह   अब नजरें मिला के   मुस्कराने लगे

राज दिल का कभी जो छिपाते थे हमसे
बातें  दिल की हमें वह  बताने  लगे 

अपना बनाने को  सोचा  था जिनको
वह  अपना हमें अब   बनाने लगे

जिनको देखे बिना आँखे रहती थी प्यासी
वह  अब नजरों से हमको पिलाने लगे

जब जब देखा उन्हें उनसे नजरे मिली
गीत हमसे खुद ब खुद बन जाने लगे

प्यार पाकर के जबसे प्यारी दुनिया रचाई
क्यों हम दुनिया को तब से भुलाने लगे

गीत ग़ज़ल जिसने भी मेरे देखे या सुने
तब से शायर वह  हमको बताने लगे

हाल देखा मेरा तो दुनिया बाले ये बोले
मदन हमको तो दुनिया से बेगाने लगे ...


ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना


 

गुरुवार, 31 जनवरी 2013

ग़ज़ल (पहचान)




ग़ज़ल (पहचान)


कल  तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआ
इक  शख्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान है

बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम न मिल सके
जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अंजान है

गर कहोगें दिन  को दिन तो लोग जानेगें गुनाह 
अब आज के इस दौर में दिखते  नहीं इन्सान है

इक दर्द का एहसास हमको हर समय मिलता रहा
ये बक्त  की साजिश है या फिर बक्त  का एहसान है

गैर बनकर पेश आते, बक्त पर अपने ही लोग
अपनो की पहचान करना अब नहीं आसान है 

प्यासा पथिक और पास में बहता समुन्द्र देखकर 
जिंदगी क्या है मदन , कुछ कुछ हुयी पहचान है 
 


ग़ज़ल
मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

ग़ज़ल (बोल)

ग़ज़ल (बोल)



उसे हम बोल क्या बोलें जो दिल को दर्द दे जाये
सुकूं दे चैन दे दिल को , उसी को बोल बोलेंगें ..

जीवन के सफ़र में जो मुसीबत में भी अपना हो
राज ए दिल मोहब्बत के, उसी से यार खोलेंगें  ..

जब अपनों से और गैरों से मिलते हाथ सबसे हों
किया जिसने भी जैसा है , उसी से यार तोलेंगें ..

अपना क्या, हम तो बस, पानी की ही माफिक हैं
 मिलेगा प्यार से हमसे ,उसी  के यार होलेंगें ..

जितना हो जरुरी ऱब, मुझे उतनी रोशनी देना 
अँधेरे में भी डोलेंगें उजालें में भी डोलेंगें ..
 


ग़ज़ल
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

ग़ज़ल(हम उनसे प्यार कर लेगें )



ग़ज़ल(हम उनसे प्यार कर  लेगें )

बोलेंगे  जो  भी  हमसे  वह  ,हम ऐतवार कर  लेगें      
जो कुछ  भी उनको प्यारा  है ,हम उनसे प्यार कर  लेगें 

वह   मेरे   पास  आयेंगे   ये  सुनकर  के   ही  सपनो  में 
क़यामत  से क़यामत तक हम इंतजार कर लेगें 

मेरे जो भी सपने है और सपनों में जो सूरत है
उसे दिल में हम सज़ा करके नजरें चार कर लेगें

जीवन भर की सब खुशियाँ ,उनके बिन अधूरी है 
अर्पण आज उनको हम जीबन हजार कर देगें 

हमको प्यार है उनसे और करते प्यार वह  हमको 
गर  अपना प्यार सच्चा है तो मंजिल पर कर लेगें



ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना