सोमवार, 2 नवंबर 2015
सोमवार, 26 अक्टूबर 2015
ग़ज़ल(खुदा जैसा ही वह होगा)
दर्द से ग़मगीन वक़्त यूँ  ही गुजर जाता है 
जीने का नजरिया तो, मालूम है उसी को वस 
अपना गम भुलाकर जो हमेशा मुस्कराता है 
अरमानों के सागर में ,छिपे चाहत के मोती को 
बेगानों की दुनिया में ,कोई अकेला जान पाता है 
शरीफों की शरारत का नजारा हमने देखा है 
मिलाता जिनसे नजरें है ,उसी का दिल चुराता है 
ना  जाने कितनी यादों  के तोहफे हमको दे डाले
खुदा जैसा ही वह  होगा ,जो दे के भूल जाता है
मर्ज ऐ इश्क में बाज़ी लगती हाथ उसके है 
दलीलों की कसौटी के ,जो जितने  पार जाता है    
शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2015
ग़ज़ल (दर्दे दिल)
दिल से दिल मिलाने की ,जुर्रत जो किया होगा 
तन्हाई में जीना तो उसका मौत से बद्तर
किसी के साथ ख्बाबों में ,जो इक  पल भी जिया होगा 
दुनिया में न जाने क्यों ,पी -पी कर के जीते है    
बही समझेगा मय पीना, जो नज़रों  से पिया होगा 
दर्दे दिल को दीवाने क्यों सीने से लगाते है
मुहब्बत में किसी ने ,शायद उसको दे दिया होगा..
मंगलवार, 13 अक्टूबर 2015
ग़ज़ल (अब समाचार ब्यापार हो गए )
किसकी बातें सच्ची जानें
अब समाचार ब्यापार हो गए
पैसा जब से हाथ से फिसला
दूर नाते रिश्ते दार हो गए
डिजिटल डिजिटल सुना है जबसे
अपने हाथ पैर बेकार हो गए
रुपया पैसा बैंक तिजोरी
आज जीने के आधार हो गए
प्रेम ,अहिंसा ,सत्य , अपरिग्रह
बापू क्यों लाचार हो गए
सीधा सच्चा मुश्किल में अब
कपटी रुतबेदार हो गए
ग़ज़ल (अब समाचार ब्यापार हो गए )
मदन मोहन सक्सेना
बुधवार, 30 सितंबर 2015
ग़ज़ल(आगमन नए दौर का)
ग़ज़ल(आगमन नए दौर का)
आगमन नए दौर का आप जिसको कह रहे 
वो सेक्स की रंगीनियों की पैर में जंजीर है 
सुन चुकेहैं  बहुत किस्से वीरता पुरुषार्थ के 
हर रोज फिर किसी द्रौपदी का खिंच रहा क्यों चीर है 
खून से खेली है होली आज के इस दौर में 
कह रहे सब आज ये नहीं मिल रहा अब नीर है 
मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी 
ये ब्यथा अपनी नहीं हर एक की ये पीर है 
आज के हालत में किस किस से हम बचकर चले 
प्रश्न  लगता है सरल पर ये बहुत गंभीर है 
चंद  रुपयों की बदौलत बेचकर हर चीज को 
आज हम आबाज देते की बेचना जमीर है 
ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना 
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