सोमवार, 26 दिसंबर 2016
शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016
मंगलवार, 13 दिसंबर 2016
मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक ३ ,दिसम्बर २०१६ में प्रकाशित
प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ , अंक ३ ,दिसम्बर २०१६ में प्रकाशितहुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .
उनको तो हमसे प्यार है ये कल की बात है
कायम ये ऐतबार था ये कल की बात है
जब से मिली नज़र तो चलता नहीं है बस
मुझे दिल पर अख्तियार था ये कल की बात है
अब फूल भी खिलने लगा है निगाहों में
काँटों से मुझको प्यार था ये कल की बात है
अब जिनकी बेबफ़ाई के चर्चे हैं हर तरफ
बह पहले बफादार थे ये कल की बात है
जिसने लगायी आग मेरे घर में आकर के
बह शख्श मेरा यार था ये कल की बात है
तन्हाईयों का गम ,जो मुझे दे दिया उन्होनें
बह मेरा गम बेशुमार था ये कल की बात है
मदन मोहन सक्सेना
बुधवार, 23 नवंबर 2016
मंगलवार, 15 नवंबर 2016
ग़ज़ल (मेरे मालिक मेरे मौला )
मेरे मालिक मेरे मौला ये क्या दुनिया बनाई है
किसी के पास खाने को मगर वो खा नहीं पाये
तेरी दुनियां में कुछ बंदें, करते काम क्यों गंदें
किसी के पास कुछ भी ना, भूखे पेट सो जाये
जो सीधे सादे रहतें हैं मुश्किल में क्यों रहतें है
तेरी बातोँ को तू जाने, समझ अपनी ना कुछ आये
तुझे पाने की कोशिश में कहाँ कहाँ मैं नहीं घूमा
जब रोता बच्चा मुस्कराता है तू ही तू नजर आये
ना रिश्तों की महक दिखती ना बातोँ में ही दम दीखता
क्यों मायूसी ही मायूसी जिधर देखो नज़र आये
गुजारिश अपनी सबसे है कि जीयो और जीने दो
ये जीवन कुछ पलों का है पता कब मौत आ जाये
ग़ज़ल (मेरे मालिक मेरे मौला )
मदन मोहन सक्सेना
गुरुवार, 10 नवंबर 2016
मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक २ ,नवम्बर २०१६ में
कौन किसी का खाता है अपनी किस्मत का सब खाते
मिलने पर सब होते खुश हैं ना मिलने पर गाल बजाते
कौन साथ ले जा पाया है रुपया पैसा महल अटारी
धरा ,धरा पर ही रह जाता इस दुनिया से जब हम जाते
इन्सां की अब बातें छोड़ों ,हमसे अच्छे भले परिंदे
मंदिर मस्जिद गुरूदारे में दाना देखा चुगने जाते
अगले पल का नहीं भरोसा जीबन में क्या हो जायेगा
खुद को ग़फ़लत में रखकर सब रुपया पैसा यार कमाते
अपना अपना राग लिए सब अपने अपने घेरे में
सबकी "मदन " यही कहानी दिन और रात गुजरते जाते
ग़ज़ल ( कौन किसी का खाता है अपनी किस्मत का सब खाते)
मदन मोहन सक्सेना
मिलने पर सब होते खुश हैं ना मिलने पर गाल बजाते
कौन साथ ले जा पाया है रुपया पैसा महल अटारी
धरा ,धरा पर ही रह जाता इस दुनिया से जब हम जाते
इन्सां की अब बातें छोड़ों ,हमसे अच्छे भले परिंदे
मंदिर मस्जिद गुरूदारे में दाना देखा चुगने जाते
अगले पल का नहीं भरोसा जीबन में क्या हो जायेगा
खुद को ग़फ़लत में रखकर सब रुपया पैसा यार कमाते
अपना अपना राग लिए सब अपने अपने घेरे में
सबकी "मदन " यही कहानी दिन और रात गुजरते जाते
ग़ज़ल ( कौन किसी का खाता है अपनी किस्मत का सब खाते)
मदन मोहन सक्सेना
मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक २ ,नवम्बर २०१६ में
बुधवार, 2 नवंबर 2016
मेरे तीन शेर
खुदा का नाम लेने में तो मुझ से देर हो जाती
खुदा के नाम से पहले हम उनका नाम लेते हैं
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दो
पाया है सदा उनको खुदा के रूप में दिल में
पाया है सदा उनको खुदा के रूप में दिल में
उनकी बंदगी कर के खुदा को पूज लेते हैं
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तीन
न मँदिर में न मस्जिद में न गिरजा में हम जाते हैं
जब नजरें चार उनसे हो ,खुदा के दर्श पाते हैं
मेरे तीन शेर
मदन मोहन सक्सेना
मेरे तीन शेर
मदन मोहन सक्सेना
बुधवार, 26 अक्तूबर 2016
शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2016
ग़ज़ल(चार पल की जिंदगी में चंद साँसों का सफर)
दर्द हमसे हमसफ़र बनकर के मिला करते हैं
इश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा
फूल भी खारों के बीच अक्सर खिला करतें हैं
डर किसे कहतें हैं हमको उस समय मालूम चला
जब कभी भूले से हम खुद से मिला करतें हैं
अंदाज बदला दोस्ती का इस तरह से आजकल
खामोश रहकर आज वे हमसे मिला करते हैं
चार पल की जिंदगी में चंद साँसों का सफर
"मदन " अपने भी पराये भी हमसे गिला करते हैं
चार पल की जिंदगी में चंद साँसों का सफर
"मदन " अपने भी पराये भी हमसे गिला करते हैं
ग़ज़ल(चार पल की जिंदगी में चंद साँसों का सफर)
मदन मोहन सक्सेना
सोमवार, 10 अक्तूबर 2016
ग़ज़ल ( कौन साथ ले जा पाया है रुपया पैसा महल अटारी)
कौन किसी का खाता है अपनी किस्मत का सब खाते
मिलने पर सब होते खुश हैं ना मिलने पर गाल बजाते
कौन साथ ले जा पाया है रुपया पैसा महल अटारी
धरा ,धरा पर ही रह जाता इस दुनिया से जब हम जाते
इन्सां की अब बातें छोड़ों ,हमसे अच्छे भले परिंदे
मंदिर मस्जिद गुरूदारे में दाना देखा चुगने जाते
अगले पल का नहीं भरोसा जीबन में क्या हो जायेगा
खुद को ग़फ़लत में रखकर हम रुपया पैसा यार कमाते
अपना अपना राग लिए सब अपने अपने घेरे में
सबकी "मदन " यही कहानी दिन और रात गुजरते जाते
ग़ज़ल ( कौन साथ ले जा पाया है रुपया पैसा महल अटारी)
मदन मोहन सक्सेना
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