शुक्रवार, 23 मार्च 2018

ग़ज़ल (किस को गैर कहदे हम और किसको मान ले अपना)





दुनियाँ  में जिधर देखो हजारो रास्ते दीखते
मंजिल जिनसे मिल जाए वह  रास्ते नहीं मिलते

किस को गैर कहदे हम और किसको मान ले अपना
मिलते हाथ सबसे हैं दिल से दिल नहीं मिलते

करी थी प्यार की बाते कभी हमने भी फूलो से
शिकायत सबको उनसे है क़ी उनके लब नहीं हिलते

ज़माने की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
ख्बाबो में भी टूटे दिल सीने पर नहीं सिलते

कहने को तो ख्बाबो में हम उनके साथ रहते हैं
मुश्किल अपनी ये है कि हकीक़त में नहीं मिलते


ग़ज़ल (किस को गैर कहदे हम और किसको मान ले अपना)

मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

गज़ल (दीवारें ही दीवारें)

गज़ल (दीवारें ही दीवारें)








दीवारें ही दीवारें नहीं दीखते अब घर यारों
बड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले है.

उलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल है
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं

जिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता है
दुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैं

जीवन के सफ़र में जो पाया है सहेजा है
खोया है उसी की चाह में ,ये दिल क्यों मचले है

समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब समय ना है
रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं

ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 5 सितंबर 2017

ग़ज़ल (इस आस में बीती उम्र)


ग़ज़ल (इस आस में बीती उम्र)

कभी गर्दिशों से दोस्ती कभी गम से याराना हुआ
चार पल की जिन्दगी का ऐसे कट जाना हुआ


इस आस में बीती उम्र कोई हमे अपना कहे
अब आज के इस दौर में ये दिल भी बेगाना हुआ

जिस  रोज से देखा उन्हें मिलने लगी मेरी नजर
आँखों से मय पीने लगे मानों  की मयखाना हुआ

इस कदर अन्जान हैं  हम आज अपने हाल से
हमसे बोला आइना ये शख्श  बेगाना हुआ



ढल नहीं जाते है लब्ज यू हीँ  रचना में  कभी
कभी गीत उनसे मिल गया ,कभी ग़ज़ल का पाना हुआ..

 



मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 14 अगस्त 2017

ग़ज़ल (बोलेंगे जो भी हमसे बह ,हम ऐतवार कर लेगें )

 ग़ज़ल (बोलेंगे जो भी हमसे बह ,हम ऐतवार कर लेगें )

बोलेंगे जो भी हमसे बह ,हम ऐतवार कर लेगें
जो कुछ भी उनको प्यारा है ,हम उनसे प्यार कर लेगें

वह  मेरे पास आयेंगे ये सुनकर के ही सपनो में
क़यामत से क़यामत तक हम इंतजार कर लेगें


मेरे जो भी सपने है और सपनों में जो सूरत है
उसे दिल में हम सज़ा करके नजरें चार कर लेगें

जीवन भर की सब खुशियाँ ,उनके बिन अधूरी है
अर्पण आज उनको हम जीबन हजार कर देगें

हमको प्यार है उनसे और करते प्यार बह हमको
गर अपना प्यार सच्चा है तो मंजिल पर कर लेगें


मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 16 मई 2017

ग़ज़ल(दुनियाँ में जिधर देखो हज़ारों रास्ते दीखते )




किसको आज फुर्सत है किसी की बात सुनने की
अपने ख्बाबों और ख़यालों  में सभी मशगूल दिखतें हैं

सबक क्या क्या सिखाता है जीबन का सफ़र यारों
मुश्किल में बहुत मुश्किल से अपने दोस्त दिखतें हैं

क्यों  सच्ची और दिल की बात ख़बरों में नहीं दिखती
नहीं लेना हक़ीक़त से  क्यों  मन से आज लिखतें हैं

धर्म देखो कर्म देखो अब असर दीखता है पैसों का
भरोसा हो तो किस पर हो सभी इक जैसे दिखतें हैं

सियासत में न इज्ज़त की ,न मेहनत की  कद्र यारों
सुहाने स्वप्न और ज़ज्बात यहाँ हर रोज बिकते हैं

दुनियाँ में जिधर देखो हज़ारों रास्ते दीखते
मंजिल जिनसे मिल जाये बह रास्ते नहीं मिलते





 ग़ज़ल(दुनियाँ में जिधर देखो हज़ारों रास्ते दीखते )
मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 12 अप्रैल 2017

इस आस में बीती उम्र कोई हमें अपना कहे


कभी गर्दिशों से दोस्ती कभी गम से याराना हुआ
चार पल की जिन्दगी का ऐसे कट जाना हुआ

इस आस में बीती उम्र कोई हमें अपना कहे
अब आज के इस दौर में ये दिल भी बेगाना हुआ

जिस  रोज से देखा उन्हें मिलने लगी मेरी नजर
आँखों से मय पीने लगे मानो कि मयखाना हुआ

इस कदर अन्जान हैं  हम आज अपने हाल से
मिलकर के बोला आइना ये शख्श  दीवाना हुआ

ढल नहीं जाते है लब्ज ऐसे रचना में  कभी
कभी गीत उनसे मिल गया ,कभी ग़ज़ल का पाना हुआ

ग़ज़ल ( इस आस में बीती उम्र कोई हमें अपना कहे)

मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 10 मार्च 2017

ग़ज़ल (चलो हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है )





मन से मन भी मिल जाये , तन से तन भी मिल जाये
प्रियतम ने प्रिया से आज मन की बात खोली है

मौसम आज रंगों का छायी अब खुमारी है
चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है

ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है

क्या जीजा हों कि साली हों ,देवर हो या भाभी हो
दिखे रंगनें में रंगानें में , सभी मशगूल होली है

ना शिकबा अब रहे कोई , ना ही दुश्मनी पनपे
गले अब मिल भी जाओं सब, आयी आज होली है

प्रियतम क्या प्रिया क्या अब सभी रंगने को आतुर हैं
चलो हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है .

होली की अग्रिम शुभकामनाएं
ग़ज़ल (चलो हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है )

मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

दिल में दर्द जगाता क्यों हैं




गर दबा नहीं है दर्द की तुझ पे
दिल में दर्द जगाता क्यों हैं

जो बीच सफर में साथ छोड़ दे
उन अपनों से मिलबाता क्यों हैं

क्यों भूखा नंगा ब्याकुल बचपन
पत्थर भर पेट खाता क्यों हैं

अपने ,सपने कब सच होते
तन्हाई में डर जाता क्यों हैं

चुप रह कर सब जुल्म सह रहे
अपनी बारी पर चिल्लाता क्यों हैं



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

दिल में दर्द जगाता क्यों हैं

गर दबा नहीं है दर्द की तुझ पे
दिल में दर्द जगाता क्यों हैं

जो बीच सफर में साथ छोड़ दे
उन अपनों से मिलबाता क्यों हैं

क्यों भूखा नंगा ब्याकुल बचपन
पत्थर भर पेट खाता क्यों हैं

अपने ,सपने कब सच होते
तन्हाई में डर जाता क्यों हैं

चुप रह कर सब जुल्म सह रहे
अपनी बारी पर चिल्लाता क्यों हैं 

मदन मोहन सक्सेना




मंगलवार, 13 दिसंबर 2016

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक ३ ,दिसम्बर २०१६ में प्रकाशित



प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,
बर्ष -३  , अंक ३   ,दिसम्बर  २०१६ में प्रकाशितहुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .


उनको तो हमसे प्यार है ये कल की बात है
कायम ये ऐतबार था ये कल की बात है

जब से मिली नज़र तो चलता नहीं है बस
मुझे दिल पर अख्तियार था ये कल की बात है

अब फूल भी खिलने लगा है निगाहों में
काँटों से मुझको प्यार था ये कल की बात है

अब जिनकी बेबफ़ाई के चर्चे हैं हर तरफ
बह पहले बफादार थे ये कल की बात है

जिसने लगायी आग मेरे घर में आकर के
बह शख्श मेरा यार था ये कल की बात है

तन्हाईयों का गम ,जो मुझे दे दिया उन्होनें
बह मेरा गम बेशुमार था ये कल की बात है


मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 15 नवंबर 2016

ग़ज़ल (मेरे मालिक मेरे मौला )


मेरे मालिक मेरे मौला ये क्या दुनिया बनाई है
किसी के पास खाने को मगर वो  खा नहीं पाये 


तेरी दुनियां में कुछ बंदें, करते काम क्यों गंदें
किसी के पास कुछ भी ना, भूखे पेट सो जाये 


जो सीधे सादे रहतें हैं मुश्किल में क्यों रहतें है
तेरी बातोँ को तू जाने, समझ अपनी ना कुछ आये


तुझे पाने की कोशिश में कहाँ कहाँ मैं नहीं घूमा
जब रोता बच्चा मुस्कराता है तू ही तू नजर आये


ना रिश्तों की महक दिखती ना बातोँ में ही दम दीखता
क्यों मायूसी ही मायूसी जिधर देखो नज़र आये 


गुजारिश अपनी सबसे है कि जीयो और जीने दो
ये जीवन कुछ पलों का है पता कब मौत आ जाये



ग़ज़ल (मेरे मालिक मेरे मौला )
 

मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक २ ,नवम्बर २०१६ में


प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक २ ,नवम्बर  २०१६ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .




कौन किसी का खाता  है अपनी किस्मत का सब खाते
मिलने पर सब होते खुश हैं ना मिलने पर गाल बजाते

कौन साथ ले जा पाया है रुपया पैसा महल अटारी
धरा ,धरा पर ही रह जाता इस दुनिया से जब हम जाते

इन्सां की अब बातें छोड़ों ,हमसे अच्छे भले परिंदे
मंदिर मस्जिद गुरूदारे में दाना देखा चुगने जाते

अगले पल का नहीं भरोसा जीबन में क्या हो जायेगा
खुद को ग़फ़लत में रखकर सब रुपया पैसा यार कमाते

अपना अपना राग लिए सब अपने अपने घेरे में
सबकी "मदन " यही कहानी दिन और रात गुजरते जाते

ग़ज़ल ( कौन किसी का खाता  है अपनी किस्मत का सब खाते)

मदन मोहन सक्सेना
 

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक २ ,नवम्बर  २०१६ में



बुधवार, 2 नवंबर 2016

मेरे तीन शेर




एक
खुदा   का  नाम  लेने में तो मुझ से देर हो जाती
खुदा के नाम से पहले हम उनका नाम लेते हैं
*********************************************
दो
पाया है सदा उनको खुदा के रूप में दिल में
उनकी बंदगी कर के खुदा को पूज लेते हैं
**********************************************

तीन 
न मँदिर में न मस्जिद में न गिरजा में हम जाते हैं
जब नजरें चार उनसे हो ,खुदा के दर्श पाते   हैं



मेरे तीन शेर 
मदन मोहन सक्सेना




बुधवार, 26 अक्तूबर 2016

आज फिर मैंने तेरी याद के दीपक जला लिए


दीवाली का पर्व है फिर अँधेरे में क्यों रहूँ 
आज फिर मैंने तेरी याद के दीपक जला लिए। 




दीपोत्सब की अग्रिम शुभकामनायें

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2016

ग़ज़ल(चार पल की जिंदगी में चंद साँसों का सफर)




क्या गुल खिलाया आजकल वक़्त  की रफ़्तार ने
दर्द हमसे हमसफ़र बनकर के मिला करते हैं

इश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा
फूल भी खारों के बीच अक्सर खिला करतें हैं 

डर किसे कहतें हैं हमको उस समय मालूम चला
जब कभी भूले से हम खुद से मिला करतें हैं

अंदाज बदला दोस्ती का  इस तरह से आजकल
खामोश रहकर  आज वे हमसे मिला करते हैं 

चार पल की जिंदगी में चंद साँसों का सफर
"मदन " अपने भी पराये भी हमसे गिला करते हैं



ग़ज़ल(चार पल की जिंदगी में चंद साँसों का सफर)

मदन मोहन सक्सेना


सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

ग़ज़ल ( कौन साथ ले जा पाया है रुपया पैसा महल अटारी)




कौन किसी का खाता  है अपनी किस्मत का सब खाते
मिलने पर सब होते खुश हैं ना मिलने पर गाल बजाते

कौन साथ ले जा पाया है रुपया पैसा महल अटारी
धरा ,धरा पर ही रह जाता इस दुनिया से जब हम जाते

इन्सां की अब बातें छोड़ों ,हमसे अच्छे भले परिंदे
मंदिर मस्जिद गुरूदारे में दाना देखा चुगने जाते

अगले पल का नहीं भरोसा जीबन में क्या हो जायेगा
खुद को ग़फ़लत में रखकर हम रुपया पैसा यार कमाते

अपना अपना राग लिए सब अपने अपने घेरे में
सबकी "मदन " यही कहानी दिन और रात गुजरते जाते

ग़ज़ल ( कौन साथ ले जा पाया है रुपया पैसा महल अटारी)
मदन मोहन सक्सेना





बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक १ ,अक्टूबर २०१६ में प्रकाशित

प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३  अंक १  ,अक्टूबर   २०१६ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .





किस ज़माने की बात करते हो
रिश्तें निभाने की बात करते हो

अहसान ज़माने का है यार मुझ पर
क्यों राय भुलाने की बात करते हो

जिसे देखे हुए हो गया अर्सा मुझे
दिल में समाने की बात करते हो

तन्हा गुजरी है उम्र क्या कहिये
जज़्बात दबाने की बात करते हो

गर तेरा संग हो गया होता "मदन "
जिंदगानी लुटाने की बात करते हो


ग़ज़ल (किस ज़माने की बात करते हो)

मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

ग़ज़ल ( मुहब्बत है इश्क़ है प्यार है या फिर कुछ और )



लोग कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती है
हम नजरें भी मिलाते हैं तो चर्चा हो जाती है.

दिल पर क्या गुज़रती है जब  वह  दूर होते हैं
पाते पास उनको हैं  तो रौनक आ जाती  है .

आकर के ख्यालों में क्यों नीदें वे   चुराते हैं
रहते दूर जब हमसे तो हर पल याद आती है.

हमको प्यार है उनसे करते  प्यार वह  हमको
ये बात रहती दिल में है  ये कही नहीं जाती है.

चार पल की जिंदगी में चन्द साँसों का सफर
अपने आजमाते हैं कभी किस्मत आज़माती है .

मुहब्बत है इश्क़ है प्यार है या फिर कुछ और
इक  शख्श की सूरत "मदन " दिल को बस भाती है.

ग़ज़ल ( मुहब्बत है इश्क़ है प्यार है या फिर कुछ और )
मदन मोहन सक्सेना