ग़ज़ल (आरजू बनवास की)
नरक की अंतिम जमीं तक गिर चुके हैं आज जो
नरक की अंतिम जमीं तक गिर चुके हैं आज जो
नापने को कह रहे , हमसे बह दूरियाँ आकाश की
इस कदर अनजान हैं ,हम आज अपने हाल से
खोजने से मिलती नहीं अब गोलिया सल्फास की
आज हम महफूज है क्यों दुश्मनों के बीच में
दोस्ती आती नहीं है रास अब बहुत ज्यादा पास की
बँट गयी सारी जमी ,फिर बँट गया ये आसमान
क्यों आज फिर हम बँट गए ज्यों गद्दिया हो तास की
हर जगह महफ़िल सजी पर दर्द भी मिल जायेगा
हर कोई कहने लगा अब आरजू बनवास की
मौत के साये में जीती चार पल की जिंदगी
क्या मदन ये सारी दुनिया, है बिरोधाभास की
ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना
वर्तमान हालातों को लेकर सार्थक अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंबहुत आभार जो आप ने रचना का अवलोकन किया !
हटाएंभविष्य में ऐसी ही कृपा का आकांक्षी रहूँगा! धन्यवाद
वाह...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..
सुन्दर और अर्थपूर्ण गज़ल..
अनु
सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई मदन भाई ||
बहुत खूब सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत आभार जो आप ने रचना का अवलोकन किया !
हटाएंभविष्य में ऐसी ही कृपा का आकांक्षी रहूँगा! धन्यवाद
बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार !
बहुत आभार जो आप ने रचना का अवलोकन किया !
हटाएंभविष्य में ऐसी ही कृपा का आकांक्षी रहूँगा! धन्यवाद
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...!!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें.
सुन्दर प्रस्तुति मदन जी
जवाब देंहटाएंशानदार रचना है आपकी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति ,शुभकामनायें.
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