ग़ज़ल ( प्यार से प्यार )
जानकर अपना तुम्हे हम हो गए अनजान खुद से
दर्द है क्यों अब तलक अपना हमें माना नहीं नहीं है
अब सुबह से शाम तक बस नाम तेरा है लबों पर
साथ हो अपना तुम्हारा और कुछ पाना नहीं है
गर कहोगी रात को दिन ,दिन लिखा बोला करेंगे
गीत जो तुमको न भाए वह हमें गाना नहीं है
गर खुदा भी रूठ जाये तो हमें मंजूर होगा
पास वह अपने बुलाये तो हमें जाना नहीं है
प्यार में गर मौत दे दें तो हमें शिकबा नहीं है
प्यार में वह प्यार से कुछ भी कहें ताना नहीं है
ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना
गर खुदा भी रूठ जाये तो हमें मंजूर होगा ,
जवाब देंहटाएंतुम्हारा रूठ जाना मंजूर हमें नहीं है !
पास बो अपने बुलाये तो हमें जाना नहीं है
तुम्हारे प्यार से फुरसत कहाँ है !
kya bat hain khubsurat .....
जवाब देंहटाएंसुखद एहसास की अनुभूति हुई आपकी उपस्थिति मात्र से और आपकी प्रतिक्रिया से संबल मिला - हार्दिक धन्यवाद
हटाएंप्यार में गर मौत दे दें तो हमें शिकबा नहीं है
जवाब देंहटाएंप्यार में बो प्यार से कुछ भी कहें ताना नहीं है ..
वाह क्या बात है ... मस्त शेर है ...
सुखद एहसास की अनुभूति हुई आपकी उपस्थिति मात्र से और आपकी प्रतिक्रिया से संबल मिला - हार्दिक धन्यवाद
हटाएंग़ज़ल के सभी अशआर खूबसूरत हैं!
जवाब देंहटाएंसुखद एहसास की अनुभूति हुई आपकी उपस्थिति मात्र से और आपकी प्रतिक्रिया से संबल मिला - हार्दिक धन्यवाद
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जवाब देंहटाएंबहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई