ग़ज़ल (आज के हालात )
आज के हालत में किस किस से हम शिकवा करें
हो रही अपनों से क्यों आज यारों जंग है
खून भी पानी की माफिक बिक रहा बाजार में
नाम से पहचान होती किस्में किसका रंग है
सत्य की सुंदर गली में मन नहीं लगता है अब
जा नहीं सकते है उसमें ये तो काफी तंग है
देखकर दुश्मन भी कहते क्या करे हम आपका
एक तो पहले से घायल गल चुके सब अंग है
बँट गए है आज हम इस तरह से देखिये
हर तरफ आबाज आती क्या अजीव संग है
जुल्म की हर दास्ताँ को, खामोश होकर सह चुके
ब्यक्त करने का मदन ये क्या अजीव ढंग है
हो रही अपनों से क्यों आज यारों जंग है
खून भी पानी की माफिक बिक रहा बाजार में
नाम से पहचान होती किस्में किसका रंग है
सत्य की सुंदर गली में मन नहीं लगता है अब
जा नहीं सकते है उसमें ये तो काफी तंग है
देखकर दुश्मन भी कहते क्या करे हम आपका
एक तो पहले से घायल गल चुके सब अंग है
बँट गए है आज हम इस तरह से देखिये
हर तरफ आबाज आती क्या अजीव संग है
जुल्म की हर दास्ताँ को, खामोश होकर सह चुके
ब्यक्त करने का मदन ये क्या अजीव ढंग है
ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना
... प्रशंसनीय- बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सराहनीय प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार !
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...!!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें.
ताज़ा हालात का सटीक चित्रण...सार्थक अभिव्यक्ति के लिए आभार आपका
जवाब देंहटाएंबहुत आभार जो आप ने रचना का अवलोकन किया !
हटाएंभविष्य में ऐसी ही कृपा का आकांक्षी रहूँगा! धन्यवाद
मदन मोहन जी बहुत आभार जो आप ने मेरे चिट्ठे का अवलोकन किया !
जवाब देंहटाएंभविष्य में ऐसी ही कृपा का आकांक्षी रहूँगा!
धन्यवाद!
बहुत आभार जो आप ने रचना का अवलोकन किया !
जवाब देंहटाएंभविष्य में ऐसी ही कृपा का आकांक्षी रहूँगा! धन्यवाद
kya bhaavabhivyakti hai.....bahut sundar
जवाब देंहटाएंEhsaas
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई