गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

ग़ज़ल (ख्बाब )



ग़ज़ल (ख्बाब )






ख्बाब था मेहनत के बल पर , हम बदल डालेंगे किस्मत
ख्बाब केवल ख्बाब बनकर, अब हमारे रह गए हैं


कामचोरी ,धूर्तता, चमचागिरी का अब चलन है
बेअरथ से लगने लगे है ,युग पुरुष जो कह गए हैं


दूसरों का किस तरह नुकसान हो सब सोचते है
त्याग ,करुना, प्रेम ,क्यों इस जहाँ से बह गए हैं


अब करा करता है शोषण ,आजकल बीरों का पौरुष
मानकर बिधि का विधान, जुल्म हम सब सह गए हैं


नाज हमको था कभी पर आज सर झुकता शर्म से
कल तलक जो थे सुरक्षित आज सरे ढह गए हैं 



ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना  

28 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. अनेकानेक धन्यवाद सकारात्मक टिप्पणी हेतु.

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  2. आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 06/10/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  3. बहुत बढ़िया कथ्य भाई जी-
    शिल्प भी अद्भुत ||

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    1. सुखद एहसास की अनुभूति हुई आपकी उपस्थिति मात्र से और आपकी प्रतिक्रिया से संबल मिला - हार्दिक धन्यवाद

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  4. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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    1. बहुत आभार जो आप ने रचना का अवलोकन किया ! भविष्य में ऐसी ही कृपा का आकांक्षी रहूँगा! धन्यवाद!

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  5. तेजी से बदलती दुनिया ...
    सत्या कहती रचना ...

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    1. बहुत आभार जो आप ने रचना का अवलोकन किया ! भविष्य में ऐसी ही कृपा का आकांक्षी रहूँगा! धन्यवाद!

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  6. सटीक लिखा है ... आज कल तो चमचागीरी का ही राज है ।

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    1. बहुत आभार जो आप ने रचना का अवलोकन किया ! भविष्य में ऐसी ही कृपा का आकांक्षी रहूँगा! धन्यवाद!

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  7. उत्तर
    1. बहुत आभार जो आप ने रचना का अवलोकन किया ! भविष्य में ऐसी ही कृपा का आकांक्षी रहूँगा! धन्यवाद!

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  8. उत्तर
    1. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .आशा है आगे भी आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा .आभार .

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  9. एक बेहतरीन गजल !

    नाज हमको था कभी पर आज सर झुकता शर्म से
    कल तलक जो थे सुरक्षित आज सरे ढह गए!

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    1. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .आशा है आगे भी आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा .आभार .

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  10. बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई

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  11. दूसरों का किस तरह नुकसान हो सब सोचते है ... इसी में सब खत्म हो रहे

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  12. उत्तर
    1. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .आशा है आगे भी आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा .आभार .

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  13. उत्तर
    1. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .आशा है आगे भी आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा .आभार .

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  14. अब करा करता है शोषण ,आजकल बीरों का पोरुष
    मानकर बिधि का विधान, जुल्म हम सब सह गए हैं

    बहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल ,उम्दा पंक्तियाँ ..

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  15. सोचने योग्य सुन्दर गजल |

    सादर

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    1. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .आशा है आगे भी आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा .आभार .

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