ग़ज़ल(बर्ष सौ बेकार हैं )
गर कोई हमसे कहे की रूप कैसा है खुदा का
हम यकीकन ये कहेंगे जिस तरह से यार है
संग गुजरे कुछ लम्हों की हो नहीं सकती है कीमत
गर तनहा होकर जीए तो बर्ष सौ बेकार हैं
सोचते है जब कभी हम क्या मिला क्या खो गया
दिल जिगर सांसे है अपनी पर न कुछ अधिकार है
याद कर सूरत सलोनी खुश हुआ करते हैं हम
प्यार से वह दर्द देदे तो हमें स्वीकार है
जिस जगह पर पग धरा है उस जगह खुशबु मिली है
नाम लेने से ही अपनी जिंदगी गुलजार है
ये ख्बाहिश अपने दिल की है की कुछ नहीं अपना रहे
क्या मदन इसको ही कहते, लोग अक्सर प्यार हैं
ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना
sundar gajal .waah
जवाब देंहटाएंबेहतरीन..
जवाब देंहटाएंआप का बहुत शुक्रिया होंसला अफजाई के लिए.
हटाएंबहुत सुन्दर . . . आपके इन ब्लॉग्स को पढ़ते-पढ़ते मेरे मन में कई प्रश्न उठते हैं। यह सब मेरे लिये अत्यन्त चिन्तनीय विषय है।
जवाब देंहटाएंस्वामी विवेकानन्द के 150 वेँ जन्म वर्ष को सम्पूर्ण भारत में विवेकानन्द सार्ध शती समारोह वर्ष के रूप में मनाया जायेगा यह ब्लॉग इस भारत जागो! विश्व जगाओ!! विश्व-व्यापी महाभियान की विभिन्न गतिविधियों को जन-सामान्य तक पहुँचाने के उद्देश्य से बनाया गया है, कृपया अपना मार्गदर्शन अवश्य देवें।
आप का बहुत शुक्रिया होंसला अफजाई के लिए.
हटाएंसोचते है जब कभी हम क्या मिला क्या खो गया
जवाब देंहटाएंदिल जिगर सांसे है अपनी पर न कुछ अधिकार है
बहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल ,उम्दा पंक्तियाँ ..
आप का बहुत शुक्रिया होंसला अफजाई के लिए.
हटाएंसुन्दर रचना
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