ग़ज़ल (इशारे जो किये होते )
किसी के दिल में चुपके से रह लेना तो जायज है
मगर आने से पहले कुछ इशारे भी किये होते
नज़रों से मिली नजरें तो नज़रों में बसी सूरत
काश हमको उस खुदाई के नज़ारे भी दिए होते
अपना हमसफ़र जाना ,इबादत भी करी जिनकी
चलतें दो कदम संग में ,सहारे भी दिए होते
जीने का नजरिया फिर अपना कुछ अलग होता
गर अपनी जिंदगी के गम ,सारे दे दिए होते
दिल को भी जला लेते और ख्बाबों को जलाते हम
गर मुहब्बत में अँधेरे के इशारे जो किये होते
ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल....
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना मेरे लिये किसी पुरस्कार से कम नहीं है.....तहे दिल से आपका शुक्रगुजार हूँ
हटाएंबहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल ,उम्दा पंक्तियाँ ..
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आपका शुक्रगुजार हूँ
हटाएंबहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल ,उम्दा पंक्तियाँ ..
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना मेरे लिये किसी पुरस्कार से कम नहीं है.....तहे दिल से आपका शुक्रगुजार हूँ
हटाएंसुन्दर भावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .आशा है आगे भी आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा .आभार .
हटाएंदिल को भी जला लेते और ख्बाबों को जलाते हम
जवाब देंहटाएंगर मुहब्बत में अँधेरे के इशारे जो किये होते
बहुत सुंदर गज़ल अनूठे भाव लिये.
अपना हमसफ़र जाना ,इबादत भी करी जिनकी
जवाब देंहटाएंचलतें दो कदम संग में ,सहारे भी दिए होते
जीने का नजरिया फिर अपना कुछ अलग होता
गर अपनी जिंदगी के गम ,सारे दे दिए होते
यही बयान करती मेरी पोस्ट
चार दिन ज़िन्दगी के .......
बस यूँ ही चलते जाना है !!
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .आशा है आगे भी आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा .आभार .
हटाएंअच्छी गजल , इसी के ऊपर मेरी गजल की चार पंक्तियाँ -
जवाब देंहटाएंनजर खामोश रहती , गर जुबां कुछ बात कर पाती
कदम मासूम रहते जो , तू हमारे साथ चल पाती
न जख्म यूँ पकता , न तो नासूर यूँ बनते ,
गर जख्म होती तू , तू ही मरहम लगा पाती |
सादर