रविवार, 11 नवंबर 2012

ग़ज़ल (दुआओं का असर)




ग़ज़ल (दुआओं का असर)

हुआ इलाज भी मुश्किल ,नहीं मिलती दबा असली
दुआओं का असर होता दुआ से काम लेता हूँ


मुझे फुर्सत नहीं यारों कि माथा टेकुं दर दर पे
अगर कोई डगमगाता है उसे मैं थाम लेता हूँ


खुदा का नाम लेने में क्यों मुझसे देर हो जाती
खुदा का नाम से पहले मैं उनका नाम लेता हूँ


मुझे इच्छा नहीं यारों की मेरे पास दौलत हो
सुकून हो चैन हो दिल को इसी से काम लेता हूँ


सब कुछ तो बिका करता मजबूरी के आलम में
सांसों के जनाज़े को सुबह से शाम लेता हूँ


सांसे है तो जीवन है तभी है मूल्य मेहनत का
जितना है जरुरी बस उसी का दाम लेता हूँ


ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब - अति सुंदर

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  2. पहली बार आना हुआ आपके ब्लॉग पर...खुबसूरत गज़लें...

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  3. बड़ी सरल भाषा में दिल तक पहुँचाने वाली भावनाएं
    साधुवाद

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  4. हुआ इलाज भी मुश्किल ,नहीं मिलती दबा असली
    दुआओं का असर होता दुआ से काम लेता हूँ

    क्या शेर है..शानदार ग़ज़ल लिखी है आपने.

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  5. मुझे फुर्सत नहीं यारों कि माथा टेकुं दर दर पे
    अगर कोई डगमगाता है उसे मैं थाम लेता हूँ
    बहुत सुन्दर सच्चाई बयान कि है आपने और यही होना भी चाहिये .....हर वेष में तू हर देश में तू तेरे नाम अनेक तू एक ही है ....मानव सेवा से बढ़ कर ईश्वर पूजा और क्या होगी
    मुझे इच्छा नहीं यारों की मेरे पास दौलत हो
    सुकून हो चैन हो दिल को इसी से काम लेता हूँ
    वाह क्या बात कही है आपने ...शुभ कामनाये .....

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  6. शुक्रिया मदन जी ,
    आपको achhibatein अच्छी लगीं !
    आप गजल अच्छी लिखते हैं ,साधुवाद आपको .......
    किसी ने कहा है ......
    काम आओ दूसरों के ,मदद गेर की करो !
    ये कर सको अगर तो इबादत है जिंदगी !!
    है ना ?
    http://achhibatein.blogspot.in/

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  7. सुंदर सरस भावनाओं से परिपूर्ण आपका ब्लॉग .... अच्छा लगा यहाँ आना ..बधाई आपको
    शुभ-कामनाएं ...

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