ग़ज़ल (चोट)
जालिम लगी दुनिया हमें हर शख्श बेगाना लगा
जालिम लगी दुनिया हमें हर शख्श बेगाना लगा
हर पल हमें धोखे मिले अपने ही ऐतबार से
नफरत से की गयी चोट से हर जख्म हमने सह लिया
घायल हुए उस रोज हम जिस रोज मारा प्यार से
प्यार के एहसास से जब जब रहे हम बेखबर
तब तब लगा हमको की हम जी रहे बेकार से
इजहार राजे दिल का बो जिस रोज मिल करने लगे
उस रोज से हम पा रहे खुशबु भी देखो खार से
जब प्यार से इंकार हो तो इकरार से है बो भला
मजा पाने लगा है अब ये मदन इकरार का इंकार से
ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना