सोमवार, 17 सितंबर 2012

ग़ज़ल(इक जैसी कहानी)




ग़ज़ल(इक जैसी कहानी)

हर  लम्हा तन्हाई का एहसास मुझकों होता है
जबकि दोस्तों के बीच अपनी गुज़री जिंदगानी है

क्यों अपने जिस्म में केवल ,रंगत  खून की दिखती
औरों का लहू बहता ,तो सबके लिए पानी है

खुद को भूल जाने की ग़लती सबने कर दी है
हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है

दौलत के नशे में जो अब दिन को रात कहतें है
हर गल्तीं की  कीमत भी, यहीं उनको चुकानी है

वक़्त की रफ़्तार का कुछ भी भरोसा  है नहीं
किसको जीत मिल जाये, किसको हार  पानी है

सल्तनत ख्बाबो की मिल जाये तो अपने लिए बेहतर है
दौलत आज है  तो क्या ,आखिर कल तो जानी है


ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

ग़ज़ल (कैसी बेकरारी है)

 ग़ज़ल (कैसी बेकरारी है)


कुछ इस  तरह से हमने अपनी जिंदगी गुजारी है
न जीने की तमन्ना है न मौत हमको प्यारी है

लाचारी का दामन आज हमने थाम रक्खा  है 
उनसे किस तरह कह दे की उनकी सूरत प्यारी है

निगाहों में बसी सूरत फिर उनको क्यों तलाशे है
ना जाने ऐसा क्यों होता और कैसी बेकरारी है

बादल बेरुखी के दिखने पर भी क्यों मुहब्बत में 
हमको ऐसा क्यों लगता की उनसे अपनी यारी है

परायी लगती दुनिया में गम अपने ही लगते है
आई अब मुहब्बत में सजा पाने की बारी है

ये सांसे ,जिंदगी और दिल सब कुछ   तो पराया है
ब्याकुल अब  मदन ये है की होती क्यों  उधारी  है  



ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 3 सितंबर 2012

ग़ज़ल(यार का चेहरा मिला)


ग़ज़ल(यार का चेहरा मिला)


हर सुबह  रंगीन   अपनी  शाम  हर  मदहोश है
वक़्त की रंगीनियों का चल रहा है सिलसिला

चार पल की जिंदगी में ,मिल गयी सदियों की दौलत
मिल गयी नजरें हमारी ,दिल से दिल अपना मिला

नाज अपनी जिंदगी पर क्यों न हो हमको भला
कई मुद्द्दतों के बाद फिर  अरमानों  का पत्ता हिला

इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर
रफ्ता रफ्ता ढह गया, तन्हाई का अपना किला

वक़्त भी कुछ इस तरह से आज अपने साथ है
चाँद सूरज फूल में बस यार का चेहरा मिला

दर्द मिलने पर शिकायत ,क्यों भला करते मदन
जब  दर्द को देखा तो  दिल में मुस्कराते ही मिला

ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 29 अगस्त 2012

ग़ज़ल ( प्यार से प्यार )

 


ग़ज़ल ( प्यार से प्यार )



जानकर अपना तुम्हे हम हो गए अनजान  खुद से
दर्द है क्यों  अब तलक अपना हमें  माना  नहीं  नहीं है

अब सुबह से शाम तक बस नाम तेरा है लबों  पर
साथ हो अपना तुम्हारा और कुछ पाना नहीं है

गर कहोगी रात को दिन ,दिन लिखा  बोला करेंगे
गीत जो तुमको न भाए वह  हमें गाना नहीं है

गर खुदा भी रूठ जाये तो हमें मंजूर होगा
पास वह  अपने बुलाये तो हमें जाना नहीं है

प्यार में गर मौत दे दें तो हमें शिकबा नहीं है
प्यार में वह प्यार  से कुछ भी कहें  ताना नहीं  है

ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना 

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

ग़ज़ल (आज के हालात )





ग़ज़ल (आज के हालात )

आज के हालत में किस किस से हम शिकवा करें 
हो रही अपनों से क्यों आज यारों  जंग है 

खून भी पानी की माफिक बिक रहा बाजार में
नाम से पहचान होती किस्में किसका रंग है 


सत्य की सुंदर गली में मन नहीं लगता है अब
जा नहीं सकते है उसमें ये तो काफी तंग है


देखकर दुश्मन  भी कहते क्या करे हम आपका
एक तो पहले से घायल गल चुके सब अंग है


बँट  गए है आज हम इस तरह से देखिये
हर तरफ आबाज आती क्या अजीव संग है

जुल्म की हर दास्ताँ को, खामोश होकर सह चुके
ब्यक्त करने का मदन ये क्या अजीव ढंग  है


ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना