जीवन में अब सार नहीं है
रिश्तें अपना मूल्य खो रहे
अपनों में वो प्यार नहीं है
जो दादा के दादा ने देखा
अब बैसा संसार नहीं है
खुद ही झेली मुश्किल सबने
संकट में परिवार नहीं है
सब सिस्टम का रोना रोते
खुद बदलें ,तैयार नहीं है
मेहनत से किस्मत बनती है
मदन आदमी लाचार नहीं है
ग़ज़ल (सब सिस्टम का रोना रोते)
मदन मोहन सक्सेना