ग़ज़ल (आज के हालात )
आज के हालत में किस किस से हम शिकवा करें
हो रही अपनों से क्यों आज यारों जंग है
खून भी पानी की माफिक बिक रहा बाजार में
नाम से पहचान होती किस्में किसका रंग है
सत्य की सुंदर गली में मन नहीं लगता है अब
जा नहीं सकते है उसमें ये तो काफी तंग है
देखकर दुश्मन भी कहते क्या करे हम आपका
एक तो पहले से घायल गल चुके सब अंग है
बँट गए है आज हम इस तरह से देखिये
हर तरफ आबाज आती क्या अजीव संग है
जुल्म की हर दास्ताँ को, खामोश होकर सह चुके
ब्यक्त करने का मदन ये क्या अजीव ढंग है
हो रही अपनों से क्यों आज यारों जंग है
खून भी पानी की माफिक बिक रहा बाजार में
नाम से पहचान होती किस्में किसका रंग है
सत्य की सुंदर गली में मन नहीं लगता है अब
जा नहीं सकते है उसमें ये तो काफी तंग है
देखकर दुश्मन भी कहते क्या करे हम आपका
एक तो पहले से घायल गल चुके सब अंग है
बँट गए है आज हम इस तरह से देखिये
हर तरफ आबाज आती क्या अजीव संग है
जुल्म की हर दास्ताँ को, खामोश होकर सह चुके
ब्यक्त करने का मदन ये क्या अजीव ढंग है
ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना