शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

ग़ज़ल(बहुत मुश्किल)




ग़ज़ल(बहुत मुश्किल)

अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल

  
ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल 


कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम
जुबां से दिल की बातों को है कह पाना बहुत मुश्किल

ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है
क्या खोया और क्या पाया कह पाना बहुत मुश्किल


ग़ज़ल :

मदन मोहन सक्सेना

रविवार, 11 नवंबर 2012

ग़ज़ल (दुआओं का असर)




ग़ज़ल (दुआओं का असर)

हुआ इलाज भी मुश्किल ,नहीं मिलती दबा असली
दुआओं का असर होता दुआ से काम लेता हूँ


मुझे फुर्सत नहीं यारों कि माथा टेकुं दर दर पे
अगर कोई डगमगाता है उसे मैं थाम लेता हूँ


खुदा का नाम लेने में क्यों मुझसे देर हो जाती
खुदा का नाम से पहले मैं उनका नाम लेता हूँ


मुझे इच्छा नहीं यारों की मेरे पास दौलत हो
सुकून हो चैन हो दिल को इसी से काम लेता हूँ


सब कुछ तो बिका करता मजबूरी के आलम में
सांसों के जनाज़े को सुबह से शाम लेता हूँ


सांसे है तो जीवन है तभी है मूल्य मेहनत का
जितना है जरुरी बस उसी का दाम लेता हूँ


ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

रविवार, 4 नवंबर 2012

ग़ज़ल (इनायत)


ग़ज़ल (इनायत)


दुनिया  बालों की हम पर जब से इनायत हो गयी
उस रोज से अपनी जख्म खाने की आदत हो गयी

शोहरत  की बुलंदी में ,न खुद से हम हुए वाकिफ़ 
गुमनामी में अपनेपन की हिफाज़त हो गयी

मर्ज ऐ  इश्क को सबने ,गुनाह जाना ज़माने में 
अपनी नज़रों में मुहब्बत क्यों इबादत हो गयी

देकर दुआएं आज फिर हम पर सितम वह  कर गए.
अब जिंदगी जीना , अपने लिए क़यामत हो गयी


दुनिया  बालों की हम पर जब से इनायत हो गयी
उस रोज से अपनी जख्म खाने की आदत हो गयी

ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना