गुरुवार, 31 जनवरी 2013

ग़ज़ल (पहचान)




ग़ज़ल (पहचान)


कल  तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआ
इक  शख्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान है

बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम न मिल सके
जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अंजान है

गर कहोगें दिन  को दिन तो लोग जानेगें गुनाह 
अब आज के इस दौर में दिखते  नहीं इन्सान है

इक दर्द का एहसास हमको हर समय मिलता रहा
ये बक्त  की साजिश है या फिर बक्त  का एहसान है

गैर बनकर पेश आते, बक्त पर अपने ही लोग
अपनो की पहचान करना अब नहीं आसान है 

प्यासा पथिक और पास में बहता समुन्द्र देखकर 
जिंदगी क्या है मदन , कुछ कुछ हुयी पहचान है 
 


ग़ज़ल
मदन मोहन सक्सेना

30 टिप्‍पणियां:

  1. गैर बनकर पेश आते, वक़्त पर अपने ही लोग
    अपनो की पहचान करना अब नहीं आसान है

    खूब कही ....!!

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    1. प्रोत्साहन के लिए आपका हृदयसे आभार . सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है .

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  2. वाह! क्या बात है .....
    इक दर्द का एहसास हमको हर समय मिलता रहा
    ये वक़्त की साजिश है या फिर वक़्त का एहसान है
    शुभकामनायें!

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    1. प्रोत्साहन के लिए आपका हृदयसे आभार . सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है .

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  3. प्यासा पथिक और पास में बहता समुन्द्र देखकर
    जिंदगी क्या है मदन , कुछ कुछ हुयी पहचान है
    - कैसी-कैसी विसंगतियों का घलमेल !

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    1. प्रोत्साहन के लिए आपका हृदयसे आभार . प्रतिभा सक्सेना जी सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है .

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  4. मदन जी बहुत खूबसूरत शब्दों में आपने गहरे भाव प्रगट किये है ,बहुत अच्छा लगा आपकी खुबसूरत गजल पढ़के, कृपया समुन्द्र की जगह समुद्र और बक्त की जगह वक्त कर ले ,धन्यवाद

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    1. आपकी प्यार भरी, उत्साह बढ़ाने वाली प्रतिक्रिया मिली बहुत अच्छा लगा। धन्यवाद !

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  5. गैर बनकर पेश आते, बक्त पर अपने ही लोग
    अपनो की पहचान करना अब नहीं आसान है -सुन्दर रचना
    New postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र
    New post तुम ही हो दामिनी।

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    1. आपकी प्यार भरी, उत्साह बढ़ाने वाली प्रतिक्रिया मिली बहुत अच्छा लगा। धन्यवाद !

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  6. Aapki gazle padhin, gazlen aur unke sath lage chitra dono jaise ek dusre ko paribhashit karte hain, har ek gazal khoobsurat hai, har ek chitra dil ko chhoo lene wala hai jo aapke maanviya paksha ko bhi dikha raha hai. Sath hi ek baat aur, aapne is blog ke head par jo paarivarik picture lagayi hai, achchha laga..........! ek sukhi aur happy parivarik jeevan ka aabhaas karata hai. fir milungi aapke blog ki member ban gayi hun, ab aap jo bhi naya likhenge, mujhe pata chal jayega aur mai, padhne +dekhne chali aaungi, shukriya.

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  7. बहुत ही बेहतरीन गजल...
    बहुत ही बढ़ियाँ....
    :-)

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  8. वाह वाह - बहुत खूब

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  9. पहली दो पंक्तियाँ मास्टरपीस हैं।

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    1. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .आशा है आगे भी आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा .आभार .

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  10. सुन्दर ब्लाग है आपका. यहाँ आ कर अच्छा लगा.

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    1. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .आशा है आगे भी आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा .आभार .

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  11. बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम न मिल सके
    जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अंजान है
    .....सुन्दर ग़ज़ल मदन जी

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    1. सुखद एहसास की अनुभूति हुई आपकी उपस्थिति मात्र से और आपकी प्रतिक्रिया से संबल मिला - हार्दिक धन्यवाद

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  12. बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम न मिल सके
    जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अंजान है ...

    बहुत खूब ... लावाब शेरों से बुनी है ये गज़ल ...

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    1. सुखद एहसास की अनुभूति हुई आपकी उपस्थिति मात्र से और आपकी प्रतिक्रिया से संबल मिला - हार्दिक धन्यवाद

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  13. very impressive post .... very well written & fabulous as always
    plz . visit -http://swapniljewels.blogspot.in/2013/01/a-kettle-of-glitters.html

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  14. सभी शेर बहुत भावपूर्ण...

    बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम न मिल सके
    जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अंजान है

    दाद स्वीकारें.

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    1. सुखद एहसास की अनुभूति हुई आपकी उपस्थिति मात्र से और आपकी प्रतिक्रिया से संबल मिला - हार्दिक धन्यवाद

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  15. अनेकानेक धन्यवाद सकारात्मक टिप्पणी हेतु.

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