बुधवार, 12 अप्रैल 2017

इस आस में बीती उम्र कोई हमें अपना कहे


कभी गर्दिशों से दोस्ती कभी गम से याराना हुआ
चार पल की जिन्दगी का ऐसे कट जाना हुआ

इस आस में बीती उम्र कोई हमें अपना कहे
अब आज के इस दौर में ये दिल भी बेगाना हुआ

जिस  रोज से देखा उन्हें मिलने लगी मेरी नजर
आँखों से मय पीने लगे मानो कि मयखाना हुआ

इस कदर अन्जान हैं  हम आज अपने हाल से
मिलकर के बोला आइना ये शख्श  दीवाना हुआ

ढल नहीं जाते है लब्ज ऐसे रचना में  कभी
कभी गीत उनसे मिल गया ,कभी ग़ज़ल का पाना हुआ

ग़ज़ल ( इस आस में बीती उम्र कोई हमें अपना कहे)

मदन मोहन सक्सेना