सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

ग़ज़ल(खुदा जैसा ही वह होगा)








 
वक़्त  की साजिश समझ कर, सब्र करना सीखियें
दर्द से ग़मगीन वक़्त यूँ  ही गुजर जाता है 

जीने का नजरिया तो, मालूम है उसी को वस 
अपना गम भुलाकर जो हमेशा मुस्कराता है 

अरमानों के सागर में ,छिपे चाहत के मोती को 
बेगानों की दुनिया में ,कोई अकेला जान पाता है

शरीफों की शरारत का नजारा हमने देखा है
मिलाता जिनसे नजरें है ,उसी का दिल चुराता है

ना  जाने कितनी यादों  के तोहफे हमको दे डाले
खुदा जैसा ही वह  होगा ,जो दे के भूल जाता है

मर्ज ऐ इश्क में बाज़ी लगती हाथ उसके है 
दलीलों की कसौटी के ,जो जितने  पार जाता है    

ग़ज़ल(खुदा जैसा ही वह  होगा)

 
मदन मोहन सक्सेना
 

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

ग़ज़ल (दर्दे दिल)



ग़ज़ल (दर्दे दिल)

रंगत इश्क की क्या है ,ये वह  ही जान सकता है
दिल से दिल मिलाने की ,जुर्रत जो किया होगा

तन्हाई में जीना तो उसका मौत से बद्तर
किसी के साथ ख्बाबों में ,जो इक  पल भी जिया होगा 

दुनिया में न जाने क्यों ,पी -पी कर के जीते है    
बही समझेगा मय पीना, जो नज़रों  से पिया होगा

दर्दे दिल को दीवाने क्यों सीने से लगाते है
मुहब्बत में किसी ने ,शायद उसको दे दिया होगा..



ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

ग़ज़ल (अब समाचार ब्यापार हो गए )














किसकी बातें सच्ची जानें
अब समाचार ब्यापार हो गए

पैसा जब से हाथ से फिसला
दूर नाते रिश्ते दार हो गए

डिजिटल डिजिटल सुना है जबसे
अपने हाथ पैर बेकार हो गए

रुपया पैसा बैंक तिजोरी
आज जीने के आधार हो गए

प्रेम ,अहिंसा ,सत्य , अपरिग्रह
बापू क्यों लाचार हो गए

सीधा सच्चा मुश्किल में अब
कपटी रुतबेदार हो गए




ग़ज़ल (अब समाचार ब्यापार हो गए )
मदन मोहन सक्सेना