बुधवार, 29 मई 2013

ग़ज़ल ( सब कुछ तो ब्यापार हुआ )


ग़ज़ल ( सब कुछ तो ब्यापार हुआ  )

 
मेरे जिस टुकड़े को  दो पल की दूरी बहुत सताती थी
जीवन के चौथेपन में अब ,बह सात समन्दर पार हुआ  


रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या व्यवहार हुआ  


दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों से
धर्म देखिये कर्म देखिये सब कुछ तो ब्यापार हुआ 


मेरे प्यारे गुलशन को न जानें किसकी नजर लगी है
युवा को अब काम नहीं है बचपन अब बीमार हुआ

जाने कैसे ट्रेन्ड हो गए मम्मी पापा फ्रेंड हो गए
शर्म हया और लाज ना जानें आज कहाँ दो चार हुआ

ताई ताऊ , दादा दादी ,मौसा मौसी  दूर हुएँ अब
हम दो और हमारे दो का ये कैसा परिवार हुआ

ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना


48 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (३०-०५-२०१३) को "ब्लॉग प्रसारण-११" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.

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  2. संवेदनाओं को झकझोरती हुई बही ही बेहतरीन ग़ज़ल लिखी है मदन मोहन सक्सेना जी...

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  3. संवेदनाओं को झकझोरती हुई बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल लिखी है मदन मोहन सक्सेना जी...

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  4. मेरे जिस टुकड़े को दो पल की दूरी बहुत सताती थी
    जीवन के चौथेपन में अब ,बह सात समन्दर पार हुआ ... मदन जी .. ये पंक्तिय ह्रदय को छू गयीं .. सुन्दर!

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  5. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....

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  6. अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.

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  7. जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ

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  8. रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
    सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या ब्यबहार हुआ ..

    वाह! दिल को छूती बहुत प्यारी रचना...

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  9. रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
    सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या ब्यबहार हुआ ...
    सच कहा है ... पैसे के आगे अब कुछ बेमानी हो गया है ... रिश्तों की कोई कद्र नहीं ...

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  10. आपने लिखा....हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए कल 03/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    धन्यवाद!

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  11. रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
    सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या ब्यबहार हुआ ..सुन्दर प्रस्तुति !
    LATEST POSTअनुभूति : विविधा ३
    latest post बादल तु जल्दी आना रे (भाग २)

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  12. आप की चिंता वाज़िब और सच है ....खूब लिखा है !
    बधाई!

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  13. रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
    सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या ब्यबहार हुआ ..----
    मार्मिक और भावुक
    जीवन की गहन अनुभूति
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई

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  14. अनुपम, अद़भुद, अतुलनीय, अद्वितीय, निपुण, दक्ष, बढ़िया रचना
    हिन्‍दी तकनीकी क्षेत्र की रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियॉ प्राप्‍त करने के लिये एक बार अवश्‍य पधारें
    टिप्‍पणी के रूप में मार्गदर्शन प्रदान करने के साथ साथ पर अनुसरण कर अनुग्रहित करें
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  15. ये किस डगर पे चल पड़ी है जिंदगी :-)
    महोदय मैं तो लौट आया अपने आँगन मे
    आपने संतान की राह तकते माँ बाप की भावनाऔ का सजीव वर्णन किया हैं

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  16. वाह बेहद खुबसूरत रचना आज के युग को परिभाषित करने में सफल |

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  17. ताई ताऊ , दादा दादी ,मौसा मौसी दूर हुएँ अब
    हम दो और हमारे दो का ये कैसा परिवार हुआ.

    बढ़िया भाव और सुंदर रचना के लिए बधाई..

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  18. रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
    सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या ब्यबहार हुआ .......खुबसूरत रचना

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  19. मेरे जिस टुकड़े को दो पल की दूरी बहुत सताती थी
    जीवन के चौथेपन में अब ,बह सात समन्दर पार हुआ .

    manveey samvednaon jane kiski najar lg gyee sb kuchh badal rha hai

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  20. सामाजिक परिवर्तन को बखूबी चित्रित किया है आपने....बधाई...

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  21. गहन अनुभूतियाँ दर्शाती अभिव्यक्ति ......

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  22. क्या बात है | बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति | मानव मन के कुशल चितेरे हैं आप मदन जी |

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  23. जाने कैसे ट्रेन्ड हो गए मम्मी पापा फ्रेंड हो गए
    शर्म हया और लाज ना जानें आज कहाँ दो चार हुआ …..


    ताई ताऊ , दादा दादी ,मौसा मौसी दूर हुएँ अब
    हम दो और हमारे दो का ये कैसा परिवार हुआ.

    वाह, बहुत ही लाजवाब रचना.

    रामराम.

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  24. जाने कैसे ट्रेन्ड हो गए मम्मी पापा फ्रेंड हो गए
    शर्म हया और लाज ना जानें आज कहाँ दो चार हुआ …..


    ताई ताऊ , दादा दादी ,मौसा मौसी दूर हुएँ अब
    हम दो और हमारे दो का ये कैसा परिवार हुआ.

    वाह, बहुत ही लाजवाब रचना.

    रामराम.

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  25. आपकी रचना की प्रशंसा जितनी की जाये कम होगी ....
    आपकी लेखनी को नमन .. ..

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  26. जाने कैसे ट्रेन्ड हो गए मम्मी पापा फ्रेंड हो गए
    शर्म हया और लाज ना जानें आज कहाँ दो चार हुआ …..

    ये भी आज के ज़माने का नया ट्रेंड है.

    सुंदर प्रस्तुति.

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  27. वाह गजल के मार्फ़त आधुनिक रहनी सहनी पर बढ़िया सवालात किये हैं .

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  28. वाह ! बहुत खूब.दिल को छू गयी ......

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  29. मदन मोहन सक्सेना जी ..bahut hi khubsurat or vyavhaarik prastuti .....naman ... par maafi ke sath ek sujhaw dena chahugi kripya anyaha na le ..ब ऑर व क उच्चारण अलग अलग होता है .. जैसे..युबा कि जगह युवा होगा .. ब्यबहार कि जगह व्यवहार होगा ..ः)

    मेरे जिस टुकड़े को दो पल की दूरी बहुत सताती थी
    जीवन के चौथेपन में अब ,बह सात समन्दर पार हुआ .

    रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
    सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या ब्यबहार हुआ ..

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  30. बहुत अचछी लगी ये आपकी गज़ल, आज के समाज का बखूबी चित्रण । आपकी और गज़लें भी पडती हूँ ।

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  31. अब कहां किसी की परवाह है किसी को। नाते-रिश्तेदारी बी सिर्फ वही रह गए हैं, जिनके पास पैसा है इस युग में। बहुत सार्थक प्रस्तुति। धन्यवाद

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  32. रिश्तों का ये नया ट्रेंड अच्छा लिखा है .सुन्दर रचना

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  33. रिश्तों का ये नया ट्रेंड अच्छा लिखा .सुन्दर रचना

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  34. Very good post brother thanks for sharing great post you are great blogger if you want to read Urdu Poetry visit my website Urdu poetry web Thanks

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