गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

गज़ल (दीवारें ही दीवारें)

गज़ल (दीवारें ही दीवारें)








दीवारें ही दीवारें नहीं दीखते अब घर यारों
बड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले है.

उलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल है
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं

जिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता है
दुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैं

जीवन के सफ़र में जो पाया है सहेजा है
खोया है उसी की चाह में ,ये दिल क्यों मचले है

समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब समय ना है
रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं

ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 5 सितंबर 2017

ग़ज़ल (इस आस में बीती उम्र)


ग़ज़ल (इस आस में बीती उम्र)

कभी गर्दिशों से दोस्ती कभी गम से याराना हुआ
चार पल की जिन्दगी का ऐसे कट जाना हुआ


इस आस में बीती उम्र कोई हमे अपना कहे
अब आज के इस दौर में ये दिल भी बेगाना हुआ

जिस  रोज से देखा उन्हें मिलने लगी मेरी नजर
आँखों से मय पीने लगे मानों  की मयखाना हुआ

इस कदर अन्जान हैं  हम आज अपने हाल से
हमसे बोला आइना ये शख्श  बेगाना हुआ



ढल नहीं जाते है लब्ज यू हीँ  रचना में  कभी
कभी गीत उनसे मिल गया ,कभी ग़ज़ल का पाना हुआ..

 



मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 14 अगस्त 2017

ग़ज़ल (बोलेंगे जो भी हमसे बह ,हम ऐतवार कर लेगें )

 ग़ज़ल (बोलेंगे जो भी हमसे बह ,हम ऐतवार कर लेगें )

बोलेंगे जो भी हमसे बह ,हम ऐतवार कर लेगें
जो कुछ भी उनको प्यारा है ,हम उनसे प्यार कर लेगें

वह  मेरे पास आयेंगे ये सुनकर के ही सपनो में
क़यामत से क़यामत तक हम इंतजार कर लेगें


मेरे जो भी सपने है और सपनों में जो सूरत है
उसे दिल में हम सज़ा करके नजरें चार कर लेगें

जीवन भर की सब खुशियाँ ,उनके बिन अधूरी है
अर्पण आज उनको हम जीबन हजार कर देगें

हमको प्यार है उनसे और करते प्यार बह हमको
गर अपना प्यार सच्चा है तो मंजिल पर कर लेगें


मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 16 मई 2017

ग़ज़ल(दुनियाँ में जिधर देखो हज़ारों रास्ते दीखते )




किसको आज फुर्सत है किसी की बात सुनने की
अपने ख्बाबों और ख़यालों  में सभी मशगूल दिखतें हैं

सबक क्या क्या सिखाता है जीबन का सफ़र यारों
मुश्किल में बहुत मुश्किल से अपने दोस्त दिखतें हैं

क्यों  सच्ची और दिल की बात ख़बरों में नहीं दिखती
नहीं लेना हक़ीक़त से  क्यों  मन से आज लिखतें हैं

धर्म देखो कर्म देखो अब असर दीखता है पैसों का
भरोसा हो तो किस पर हो सभी इक जैसे दिखतें हैं

सियासत में न इज्ज़त की ,न मेहनत की  कद्र यारों
सुहाने स्वप्न और ज़ज्बात यहाँ हर रोज बिकते हैं

दुनियाँ में जिधर देखो हज़ारों रास्ते दीखते
मंजिल जिनसे मिल जाये बह रास्ते नहीं मिलते





 ग़ज़ल(दुनियाँ में जिधर देखो हज़ारों रास्ते दीखते )
मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 12 अप्रैल 2017

इस आस में बीती उम्र कोई हमें अपना कहे


कभी गर्दिशों से दोस्ती कभी गम से याराना हुआ
चार पल की जिन्दगी का ऐसे कट जाना हुआ

इस आस में बीती उम्र कोई हमें अपना कहे
अब आज के इस दौर में ये दिल भी बेगाना हुआ

जिस  रोज से देखा उन्हें मिलने लगी मेरी नजर
आँखों से मय पीने लगे मानो कि मयखाना हुआ

इस कदर अन्जान हैं  हम आज अपने हाल से
मिलकर के बोला आइना ये शख्श  दीवाना हुआ

ढल नहीं जाते है लब्ज ऐसे रचना में  कभी
कभी गीत उनसे मिल गया ,कभी ग़ज़ल का पाना हुआ

ग़ज़ल ( इस आस में बीती उम्र कोई हमें अपना कहे)

मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 10 मार्च 2017

ग़ज़ल (चलो हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है )





मन से मन भी मिल जाये , तन से तन भी मिल जाये
प्रियतम ने प्रिया से आज मन की बात खोली है

मौसम आज रंगों का छायी अब खुमारी है
चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है

ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है

क्या जीजा हों कि साली हों ,देवर हो या भाभी हो
दिखे रंगनें में रंगानें में , सभी मशगूल होली है

ना शिकबा अब रहे कोई , ना ही दुश्मनी पनपे
गले अब मिल भी जाओं सब, आयी आज होली है

प्रियतम क्या प्रिया क्या अब सभी रंगने को आतुर हैं
चलो हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है .

होली की अग्रिम शुभकामनाएं
ग़ज़ल (चलो हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है )

मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

दिल में दर्द जगाता क्यों हैं




गर दबा नहीं है दर्द की तुझ पे
दिल में दर्द जगाता क्यों हैं

जो बीच सफर में साथ छोड़ दे
उन अपनों से मिलबाता क्यों हैं

क्यों भूखा नंगा ब्याकुल बचपन
पत्थर भर पेट खाता क्यों हैं

अपने ,सपने कब सच होते
तन्हाई में डर जाता क्यों हैं

चुप रह कर सब जुल्म सह रहे
अपनी बारी पर चिल्लाता क्यों हैं



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना